राष्ट्रीय संग्रहालय प्रयाग में संग्रहीत प्राचीन जैन प्रतिमाएँ ध्रुव कुमार जैन —कटरा मेंदनीगंज, प्रतापगढ़ (उ. प्र.) राष्ट्रीय संग्रहालय प्रयाग म्युनिस्पल कार्पोरेशन इलाहाबाद के अन्तर्गत पुरातन कलाकृतियों का एक सुन्दर संग्रह है। प्रयाग संग्रहालय में प्राचीनतम पाषाण एवं मृणमृर्तियों के अतिरिक्त मृणवर्तन, मनके, प्राचीन समय में घरों के निर्माण में लगने वाले उपकरण, प्राचीन अस्त्र—शस्त्र,…
चित्रकूट जनपद में जैन स्थापत्य एवं मूर्तिकला डॉ. आदित्यनाथ प्राकृतिक सौन्दर्य से सम्पन्न चित्रकूट जनपद के दक्षिण में मध्य प्रदेश, उत्तर में जनपद फतेहपुर, पूर्व में जनपद इलाहाबाद, पश्चिम में जनपद बाँदा तथा— पूर्व दिशा में जनपद कौशाम्बी स्थित है। इस जनपद के उत्तरी सिरे को यमुना नदी आच्छादित करती है। चित्रकूट जनपद का दक्षिणी…
असोथर स्थित पूर्वमध्यकालीन दिगम्बर जैन प्रतिमाएँ डॉ. कृष्ण कुमार उत्तर प्रदेश का फतेहपुर जनपद पूर्व में कौशाम्बी तथा पश्चिम में कानपुर नगर व कानपुर देहात जनपदों के मध्य स्थित है। इसकी उत्तरी व दक्षिणी सीमाएँ गंगा तथा यमुना नदियों द्वारा रेखांकित होती हैं। यद्यपि क्षेत्रफल में यह छोटा, किन्तु पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण भूभाग…
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के मुक्तक यह ब्रह्मस्वरूप कही आत्मा, इसमें चर्या ब्रह्मचर्य कहा। गुरुकुल में वास रहे नित ही, वह भी है ब्रह्मचर्य दुखहा१।। सब नारी को माता भगिनी, पुत्रोवत् समझें पुरुष सही। महिलायें पुरुषों को भाई, पितु पुत्र सदृश समझें नित ही।।१।। इक अंक लिखे बिन अगणित भी, बिन्दु की संख्या क्या होगी ?…
उत्तम तप धर्म के मुक्तक उत्तम तप द्वादश विध माना, बाह्याभ्यंतर के भेदों से। अनशन ऊनोदर वृत्तपरीसंख्या,१ रस त्याग प्रभेदों से।। एकान्त शयन आसन करना, तनु क्लेश यथाशक्ति तप है। तपने से स्वर्ण शुद्ध होता, आत्मा भी तप से शुद्धि लहे।।१।। प्रायश्चित विनय सुवैयावृत, स्वाध्याय उपाधि का त्याग कहे। शुचि ध्यान छहों अन्तर तप ये,…
उत्तम आर्जव धर्म के मुक्तक ऋजु भाव कहा आर्जव उत्तम, मन वच औ काय सरल रखना। इन कुटिल किये माया होती, तिर्यंचगति के दु:ख भरना।। नृप सगर छद्म से ग्रन्थ रचा, मधुिंपगल का अपमान किया। उसने भी कालासुर होकर, हिसामय यज्ञ प्रधान किया।।१।। मृदुमति मुनि ने ख्याति पूजा—हेतु माया को ग्रहण किया। देखो हाथी का…
उत्तम संयम धर्म के मुक्तक व्रत धारण समिति का पालन, क्रोधादि कषाय विनिग्रह है। मन वच तन की चेष्टा त्यागे, इन्द्रिय जप संयम पाँच कहे।। अथवा त्रसथावर षट्कायों की, रक्षा पंचेन्द्रिय मन जय। द्वादशविध संयम को पालें, वे मुनिवर संतत व्रतगुणमय।।१।। इस जीव लोक में हे स्वामिन् ! कैसे आचरण करें मुनिगण ? कैसे ठहरें,…