तीस चौबीसी तीर्थंकर स्तोत्र (गणिनी ज्ञानमती विरचित) मंगलाचरण दोहा अनंत दर्शन ज्ञान औ, सुख औ वीर्य अनंत। अनंत गुण के तुम धनी, नमूँ नमूँ भगवंत।।१।। (चाल-हे दीनबंधु.......) जैवंत तीर्थंकर अनंत सर्वकाल के। जैवंत धर्मवंत न हों वश्य काल के।। जै पाँच भरत पाँच ऐरावत में हो रहे। जै भूत वर्तमान औ भविष्य के कहे।।१।। इस...