छंद शतक
साहित्य रचना में जिस पकार रस , अलंकार , व्याकरण आदि आवश्यक अंग होते हैं उसी प्रकार छंद शास्त्र का भी महत्वपूर्ण स्थान है |जैसे कोई स्त्री सुन्दर वस्त्रालंकारों से सुसज्जित होते हुए भी बेडौल है तो उसे अलंकार शोभित नहीं कर सकते हैं उसी प्रकार छंद के बिना साहित्य रचना हमें अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती अतः छंदशास्त्र का ज्ञान अत्यावश्यक है | कविवर वृन्दावन रचित इस पुस्तक में १०० प्रकार के छंदों का वर्णन है , इसमें छंद के लक्षण में ही छंद के नाम सन्निहित है |