आयुर्वेदिक चिकित्सा की व्यापकता वैद्य धर्मचन्द्र जैन- इन्दौर (म० प्र०) वैद्य धर्मचन्द्र जैन शास्त्री आयुर्वेद के निष्णात विद्वान थे। प्रिंस यशवन्तराव आयुर्वेदिक जैन औषधालय में आपने वर्षों तक अपनी सेवायें दी। साधु संतों के संघों में स्वयं जाकर ये निस्पृह भाव से अमूल्य सेवायें देते थे। आयुर्वेद या आयुर्विज्ञान शाश्वत अनादिकालीन है। सृष्टि का निर्माण…
तीर्थंकर जन्माभिषेक महिमा (हरिवंशपुराण से) तदनन्तर इन्द्र की आज्ञा और अपनी भक्ति के भार से कुबेर ने स्वयं आकर शुभ तीर्थजल से भगवान् के माता-पिता का अच्छी तरह अभिषेक किया और मनोज्ञ कल्पवृक्षों से उत्पन्न अन्यजन-दुर्लभ सुगन्ध और उत्तमोत्तम आभूषणों से उनकी पूजा की।।१।। जिस प्रकार आकाश की लक्ष्मी अपने निर्मल उदर में चन्द्रमा को…
तीर्थंकर जन्माभिषेक महिमा (सिद्धान्तसार दीपक से) अर्थ :- विदेह क्षेत्रों में स्थित विद्यमान तीर्थंकरो को, उन (अर्हन्तों) की प्रतिमाओं को तथा पञ्चपरमेष्ठियों को नमस्कार करके मैं उत्तम विदेह क्षेत्र को कहूँगा अर्थात् विदेहक्षेत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन करूंगा।।१।। विदेहक्षेत्रस्थ सुदर्शन मेरु का सविस्तार वर्णन अर्थ :— विदेह के मध्य में सुदर्शन नाम का एक श्रेष्ठ…
श्रावक और उनके षड् आवश्यक कर्तव्य श्रावक शब्द का अर्थ श्रावक शब्द का सामान्य अर्थ श्रोता या सुनने वाला है। जो जिनेन्द्र भगवान के वचनों को एवं उनके अनुयायी गुरूओं के उपदेश को श्रद्धापूर्वक सावधानी से सुनता है, वह श्रावक है कहा भी गया है| ‘‘अवाप्तदृष्टयादि विशुद्धसम्पत् परं समाचारमनुप्रभातम्। श्रृणोति य: साधुजनादतन्द्रस्तं श्रावकं प्राहुरमीर जिनेन्द्रा:।।’’१…
श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में दान परम्परा शुद्ध धर्म का अवकाश न होने से धर्म में दान की प्रधानता है। दान देना मंगल माना जाता था। याचक को दान देकर दाता विभिन्न प्रकार के सुखों की अनुभूति करता था। अभिलेखों के वण्र्य—विषय को देखते हुए यह माना जा सकता है कि दान देने के कई प्रयोजन…
वैदिक संस्कृति और जैन संस्कृति संस्कृति शब्द सम् उपसर्ग पूर्वक कृ धातु से क्तिन् प्रत्यय् करने पर निष्पन्न होता है अतः संस्कृति शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ है- सम्यक् प्रकार से किया गया कार्य। संस्कृति शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग यजुर्वेद में दृष्टिगत होता है- आच्छिन्नस्य ते देव सोम सुवीर्यस्य रायस्पोषस्य ददितारः स्याम। ‘सा प्रथमा संस्कृतिर्विश्ववारा1‘ अर्थात्…
ध्यान का स्वरूप एवं उसके भेद तथा गुण-दोष विवेचन ध्यान शब्द भ्वादि गण की परस्मैपदी ध्यै धातु से ल्युट् प्रत्यय करने पर निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ सोचना, मनन करना, विचार करना, चिन्तन करना, विचार-विमर्श करना आदि है । वस्तुत: एकाग्रता का नाम ध्यान है ऐसा एक भी क्षण नहीं रहता है, जब व्यक्ति किसी…
तत्वार्थसूत्र में ध्यान एक विश्लेषण भारतीय संस्कृति की अविच्छिन्न और विशाल परम्परा में विभिनन मतवादों या आचार-विचारों का अदभुत समन्वय है। यद्यपि वे विभिन्न आचार-विचार अपनी विशिष्टताओं के कारण अपना अलग-अलग अस्तित्व रखते हैं। तथापि उनमें एकसूत्रता भी पर्याप्त है। कितने ही ऐसे तत्त्व हैं जो प्रकारान्तर से एक दूसरे के पर्याय अथवा एक दूसरे…