श्री मुनिसुव्रतनाथ वंदना दोहा अखिल अमंगल को हरें, श्रीमुनिसुव्रत देव। मेरे कर्मांजन हरें, नित्य करूँ मैं सेव।।१।। सखी छंद जय जय जिनदेव हमारे, जय जय भविजन बहुतारे। जय समवसरण के देवा, शत इन्द्र करें तुम सेवा।।२।। जय मल्लि प्रमुख गणधरजी, सब अठरह गणधर गुरु जी। जय तीस हजार मुनीश्वर, रत्नत्रय भूषित ऋषिवर।।३।। ...
श्री सुमतिनाथ वन्दना गीता छंद श्रीसुमति तीर्थंकर जगत में, शुद्धमति दाता कहे। निज आतमा को शुद्ध करके, लोक मस्तक पर रहें।। मुनि चार ज्ञानी भी सतत, वंदन करें संस्तवन करें। हम भक्ति से नितप्रति यहाँ, प्रभु पद कमल वंदन करें।।१।। नाराचछंद नमो नमो जिनेन्द्रदेव! आपको सुभक्ति से। मुनीन्द्रवृंद आप ध्याय कर्मशत्रु से छुटें।। अनाथ नाथ!...
श्री अभिनन्दननाथ वन्दना दोहा गणपति नरपति सुरपती, खगपति रुचि मन धार। अभिनंदन प्रभु आपके, गाते गुण अविकार।।१।। शेर छंद जय जय जिनेन्द्र आपने जब जन्म था लिया। इन्द्रों के भी आसन कंपे आश्चर्य हो गया।। सुरपति स्वयं आसन से उतर सात पग चले। मस्तक झुका के नाथ चरण वंदना करें।।२।। प्रभु आपका जन्माभिषेक इन्द्र...
श्री पद्मप्रभ वन्दना दोहा श्रीपद्मप्रभु गुणजलधि, परमानंद निधान। मन वचतन युत भक्ति से, नमूँ नमूँ सुखदान।।१।। चामरछंद देवदेव आपके पदारिंवद में नमूँ। मोह शत्रु नाशके समस्त दोष को वमूँ।। नाथ! आप भक्ति ही अपूर्व कामधेनु है। दु:खवार्धि से निकाल मोक्ष सौख्य देन है।।२।। जीव तत्त्व तीन भेद रूप जग प्रसिद्ध है। बाह्य अंतरातमा व...
श्री अजितनाथ वन्दना गीताछंद इस प्रथम जम्बूद्वीप में, है भरतक्षेत्र सुहावना। इस मध्य आरजखंड में, जब काल चौथा शोभना।। साकेतपुर में इन्द्र वंदित, तीर्थकर जन्में जभी। उन अजितनाथ जिनेश को, मैं भक्ति से वंदूं अभी।।१।। शंभु छंद जय जय तीर्थंकर क्षेमंकर, जय समवसरण लक्ष्मी भर्ता। जय जय अनंत दर्शन सुज्ञान, सुख वीर्य चतुष्टय के धर्ता।।...
श्री संभवनाथ वन्दना रोला छंद जय जय संभवनाथ, गणधर गुरु तुम वंदें। जय जय संभवनाथ, सुरपति गण अभिनंदें।। जय तीर्थंकर देव, धर्मतीर्थ के कर्ता। तुम पद पंकज सेव, करते भव्य अनंता।।१।। घातिकर्म को नाश, केवल सूर्य उगायो। लोकालोक प्रकाश, सौख्य अतीन्द्रिय पायो।। द्वादश सभा समूह, हाथ जोड़कर बैठे। पीते वचन पियूष, स्वात्म निधी को...
श्री ऋषभदेव वन्दना गीता छंद हे आदिब्रह्मा! युगपुरुष! पुरुदेव! युगस्रष्टा तुम्हीं। युग आदि में इस कर्मभूमी, के प्रभो! कर्ता तुम्हीं।। तुम ही प्रजापतिनाथ! मुक्ती के विधाता हो तुम्हीं। मैं भक्ति से वंदन करूं, मन वचन तन से नित यहीं।।१।। शंभु छंद श्री वृषभसेन आदिक चौरासी, गणधर मुनि चौरासि सहस। ब्राह्मी गणिनी त्रय लाख पचास, हजार...