21. पंचपरमेष्ठी का वर्णन
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) ‘‘अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायेभ्यस्तथा च साधुभ्य:। सर्वजगद्वंद्येभ्यो नमोऽस्तु सर्वत्र सर्वेभ्य:।।४।।’’ अमृतर्विषणी टीका— अर्थ— अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पांच परमेष्ठी सर्वजगत् में वंद्य हैं। सर्वत्र—सर्वकालिक—त्रैकालिक इन सभी अनंतानंत पांचों परमेष्ठी को मेरा ‘नमोऽस्तु’ नमस्कार होवे। पंचपरमेष्ठी का स्वरूप अरिहंत परमेष्ठी घणघाइकम्मरहिया केवलणाणाइपरमगुणसहिया। चोत्तिसअदिसअजुत्ता अरिहंता एरिसा होंति।।७१।। नियमसार प्राभृत पृ….