तीर्थंकर जन्मभूमि तीर्थ पूजा
तीर्थंकर जन्मभूमि तीर्थ पूजा स्थापना (शंभु छन्द) तीर्थंकर श्री ऋषभदेव से, महावीर तक करूँ नमन। चौबीसों जिनवर की पावन, जन्मभूमियों को वन्दन।। जैनी संस्कृति…
तीर्थंकर जन्मभूमि तीर्थ पूजा स्थापना (शंभु छन्द) तीर्थंकर श्री ऋषभदेव से, महावीर तक करूँ नमन। चौबीसों जिनवर की पावन, जन्मभूमियों को वन्दन।। जैनी संस्कृति…
श्री शांतिसागर जी महाराज की पूजन तर्ज – झुमका गिरा रे …. पूजन करो रे, श्रीशान्तिसिन्धु आचार्य प्रवर की, पूजन करो रे-२। भारतवसुन्धरा ने जब, मुनियों के दर्श नहिं पाये…
ज्येष्ठ जिनवर पूजा ज्येष्ठ जिनवर व्रत में नाभिराय कुल मण्डन मरुदेवी उर जननं। प्रथम तीर्थंकर गाये सु स्वामी आदि जिनं।। ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी। सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र भरणी।।१।। जुगला धर्म निवारण स्वामी ऋषभ जिनम्। संसार सागर तारण सेविय सुर गहनं।। ज्येष्ठ जिनेन्द्र न्हवाऊँ सूरज उग्र भणी। सुवरण कलशा भराऊँ क्षीरसमुद्र…
जिनसहस्रनाम पूजा अथ स्थापना शंभु छंद जिनवर की प्रथम दिव्य देशना, नंतर सुरपति अति भक्ती से। निज विकसित नेत्र हजार बना, प्रभु को अवलोकें विक्रिय से।। प्रभु एक हजार आठ लक्षणधारी सब भाषा के स्वामी। शुभ एक हजार आठ नामों से, स्तुति करता वह शिवगामी।। दोहा एक हजार सु आठ ये, श्री…
जिनगुण संपत्ति पूजा स्थापना गीता छंद जैनेन्द्र गुण की संपदा के, नाम त्रेसठ मुख्य हैं। सोलह सुकारण भावना, वर प्रातिहार्य जु अष्ट हैं।। चौंतीस अतिशय पंचकल्याणक सुत्रेसठ जानिये। श्री जिनगुणों की थापना कर, पूजते सुख मानिए।।१।। ॐ ह्रीं जिनगुणसंपत्तिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं जिनगुणसंपत्तिसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ:…
श्री शान्तिसागर आचार्य महाराज का अन्तिम संदेश (आचार्य महाराज का अंतिम अमर संदेश) (परमपूज्य आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज ने कुंथलगिरि तीर्थ पर आमरण अनशन के २६वें दिन ता. ८ सितम्बर को शाम के ५ बजे मराठी में मानव-कल्याण के लिए जो उपदेश दिया, वह रिकार्ड किया गया था। आचार्य श्री के…
प. पू. समाधिसम्राट चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज यांचा अंतिम संदेश उपदेश स्थान- श्री सिद्धक्षेत्र कुंथलगिरी (यम सल्लेखना २६ वा दिवस) ता. ८-९-१९५५ ॐ जिनाय नम: ॐ सिध्दाय नम: ॐ अर्हत् सिध्दाय नम: भरत ऐरावत क्षेत्रस्थ भूत-भविष्य वर्तमान, तीस चोवीसो भगवान नमो नम:, सीमंधरादि वीस विहरमान तीर्थंकर भगवान नमो नम:, ऋषभादि महावीर पर्यंत…
तीर्थंकर मातृत्व का सर्वोत्कृष्ट फल ‘‘तीर्थंकर बनते नहीं – नारी तीर्थंकर जनती है’’ यह अकाट्य सत्य है कि नारी जब तीर्थंकर पुत्र को जन्म देती है, लोक पूज्य बन जाती है देव इन्द्र आकर उसकी पूजा,स्तुति करते हैं। महान पुत्र की महान माता के गृह—आंगन में ही नहीं सम्पूर्ण नगरी में दिन में तीन—तीन बार…