सप्तऋषियों का प्रभाव (ऋद्धियों की महिमा-मथुरा में महामारी प्रकोप, सप्तऋषि के चातुर्मास से कष्ट निवारण) राजा मधुसुन्दर का वह दिव्य शूलरत्न यद्यपि अमोघ था फिर भी शत्रुघ्न के पास वह निष्फल हो गया, उसका तेज छूट गया और वह अपनी विधि से च्युत…
गणधरवलय मंत्र अमृतर्विषणी टीका बृहत्प्रतिक्रमण अर्थात् पाक्षिक प्रतिक्रमण जो कि मुनियों एवं आर्यि्काओ के लिए कहा गया है। उसकी टीका करते श्री प्रभाचंद्राचार्य कहते हैं- दोषा दैवसिकप्रतिक्रमणतो नश्यन्ति ये नृणां। तन्नाशार्थमिमां ब्रवीति गणभृच्छ्रीगौतमो निर्मलाम्।। सूक्ष्मस्थूलसमस्तदोषहननीं सर्वात्मशुद्धिप्रदां। यस्मान्नास्ति बृहत्प्रतिक्रमणतस्तन्नाशहेतु: पर:।।१।। श्रीगौतमस्वामी दैवसिकादिप्रतिक्रमणादिभिर्निराकर्तुमशक्यानां दोषाणां निराकरणार्थं बृहत्प्रतिक्रमणलक्षणमुपायं विदधानस्तदादौ मंगलाद्यर्थमिष्ट-देवताविशेषं नमस्कुर्वन्नाह१— ‘‘णमो जिणाणमित्यादि’’। मनुष्यों के अर्थात् मुनि—आर्यिका पूज्य संयमियों…
मुनि विष्णु्कुमार की कथा (विक्रिया ऋद्धि की महिमा) (१) दिगम्बर गुरु श्री अकंंपन आचार्य महाराज शहर और ग्रामों में विहार करते हुए उज्जयिनी नगरी के उद्यान में जाकर ठहर जाते हैं। उनके साथ सात सौ मुनियों का विशाल संघ है। इतने बड़े संघ के अधिनायक आचार्य अपने निमित्तज्ञान से इस बात को जान लेते…
भगवान बाहुबली चरित (आदिपुराण में श्री बाहुबली के ध्यानावस्था में मन:पर्ययज्ञान एवं अनेक ऋद्धियाँ मानी है।) —चौबोल छंद— श्री जिन श्रुत गुरु वंदन करके, वृषभदेव को नमन करूँ। गुणमणि पूज्य बाहुबलि प्रभु के, चरण कमल का ध्यान करूँ।। श्री श्रुतकेवलि भद्रबाहु मुनि, चन्द्रगुप्त नेमीन्दु नमूँ। शांति सिंधु गणि वीर सिंधु नमि, बाहुबली शुभ चरित कहूँ।।१।।…
गणधरवलय मंत्र में अन्तर के प्रमाण (विभिन्न ग्रंथों से) क्रिया कलाप से१ प्रतिक्रमण ग्रंथत्रयी२ षट्खंडागम धवला टीका३ पुस्तक९ १. णमो जिणाणं णमो जिणाणं णमो जिणाणं २. णमो ओहिजिणाणं णमो ओहिजिणाणं णमो ओहिजिणाणं ३. णमो परमोहिजिणाणं णमो परमोहिजिणाणं णमो परमोहिजिणाणं ४. णमो सव्वोहिजिणाणं णमो सव्वोहिजिणाणं णमो सव्वोहिजिणाणं ५. णमो अणंतोहिजिणाणं णमो अणंतोहिजिणाणं णमो अणंतोहिजिणाणं ६. णमो…
गणधरवलय मंत्र (अध्याय ६) श्रीगौतमस्वामी उवाच— णमो जिणाणं णमो ओहिजिणाणं णमो परमोहिजिणाणं, णमो सव्वोहिजिणाणं णमो अणंतोहिजिणाणं णमो कोट्ठ-बुद्धीणं णमो बीजबुद्धीणं णमो पादाणुसारीणं णमो संभिण्णसोदाराणं णमो सयंबुद्धाणं णमो पत्तेयबुद्धाणं णमो बोहियबुद्धाणं णमो उजुमदीणं णमो विउलमदीणं णमो दसपुव्वीणं णमो चउदसपुव्वीणं णमो अट्ठंग-महा-णिमित्त- णमो विउव्व-इड्ढि- पत्ताणं णमो विज्जाहराणं णमो चारणाणं णमो पण्णसमणाणं२ णमो आगास-गामीणं णमो आसीविसाणं णमो दिट्ठिविसाणं…
पाक्षिक-प्रतिक्रमण (हिन्दी पद्यानुवाद) (शिष्य साधुवर्ग पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण में लघु सिद्ध श्रुत आचार्य भक्ति पढ़कर आचार्य की वंदना करें।) नमोऽस्तु आचार्यवंदनायां प्रतिष्ठापनसिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं- (९ जाप्य) लघु सिद्धभक्ति समकित दर्शनज्ञान वीर्य सूक्ष्मत्व तथा अवगाहन हैं। अव्याबाध अगुरुलघु ये सिद्धों के आठ महागुण हैं।।१।। तप से सिद्ध नयों से सिद्ध सुसंयमसिद्ध चरित सिद्धा। ज्ञान सिद्ध दर्शन से…
‘महु—मंस—मज्ज—जूआ… ’ अमृतर्विषणी टीका ‘‘महु—मंस—मज्ज—जूआ, वेसादिविवज्जणासीलो। पंचाणुव्वयजुत्तो, सत्तेिंह सिक्खावएिंह संपुण्णो।।’’ श्रावक के अष्टमूलगुण एवं सप्तव्यसन त्याग का वर्णन— अर्थ—मधु, मांस, मद्य, जुआ और वेश्या आदि व्यसन, इनको त्याग करने वाला, पाँचों अणुव्रतों से युक्त तथा सात शिक्षाव्रतों से परिपूर्ण गृहस्थ होता है। मधु, मांस और मद्य का त्याग करना। दर्शन प्रतिमा के लक्षण में…
‘तृतीय अतिथिसंविभाग… ’ अमृतर्विषणी टीका तृतीय अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत— यहां विशेष अर्थ का विवेचन करते हैं— तृतीय अतिथिसंविभागव्रत में दान के चार भेद माने हैं— आहार दान औषधी दान, और शास्त्रदान आवास दान। ये अतिथी संविभाग व्रत के, चउ भेदरूप हैं चार दान।। प्रासुक भोजन औषधियों से, श्रावकजन मुनि को स्वस्थ करे। पिच्छी शास्त्रादी दे उनको,…