29. ये व्यंतरविमानेषु स्थेयांस:
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) ‘‘ये व्यन्तरविमानेषु स्थेयांस: प्रतिमागृहा:। ते च संख्यामतिक्रान्ता: सन्तु नो दोषविच्छिदे।।१९।।’’ अमृतर्विषणी टीका अर्थ- व्यंतरों के आवासों में सर्वदा अवस्थित जो असंख्यात प्रतिमागृह हैं वे मेरे दोषों की शान्ति के लिये होवें ।।१९।। व्यन्तर देव व्यंतर देव- रत्नप्रभा पृथ्वी के खरभाग में व्यंतर देवों के सात भेद रहते हैं-किन्नर,…