सोलहकारण भावनाएँ (षट्खण्डागम ग्रंथ के आधार से) दिगम्बर जैन परम्परा में ‘षट्खण्डागम ग्रंथ’ सिद्धान्त के सर्वोपरि ग्रंथ माने हैं। इस षट्खण्डागम में छह खण्डों के-१. जीवस्थान, २. क्षुद्रकबंध, ३. बंधस्वामित्वविचय, ४. वेदनाखण्ड, ५. वर्गणाखण्ड और ६. महाबंध, ये नाम हैं। इनमें से षट्खण्डागम का जो तृतीय खण्ड है-‘‘बंधस्वामित्वविचय’’ इस ग्रंथ में जीव के साथ कर्मों…
इसमें बताया गया हैं कि जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने से अनतानंत उपवासों का फल मिलता हैं |
श्री ऋषभदेव के पुत्र ‘भरत’ से ‘भारत’ तीर्थंकर ऋषभदेव राज्यसभा में सिंहासन पर विराजमान थे, उनके चित्त में विद्या और कला के उपदेश की भावना जाग्रत हो रही थी। इसी बीच में ब्राह्मी और सुंदरी दोनों कन्याओं ने आकर पिता को नमस्कार किया। पिता ने आशीर्वाद देते हुये बड़े प्यार से दोनों कन्याओं को अपनी…
श्री तीस चौबीसी नामावली स्तुति -शंभु छंद- सिद्धी को प्राप्त हुए होते, होवेंगे भरतैरावत में। ये भूत भवद् भावी जिनवर, मेरे भी रक्षक हों जग में।। इस मध्यलोक के मध्य प्रथित, वर जम्बूद्वीप प्रमुख जानो। उसके दक्षिण में भरत तथा, उत्तर में ऐरावत मानो।।१।। पूरब औ अपर धातकी खंड, द्वीप में दक्षिण उत्तर में। दो…