जम्बूद्वीप, तेरहद्वीप एवं तीनलोक रचना (संक्षिप्त परिचय) हस्तिनापुर में निर्मित जम्बूद्वीप रचना में- १. सुदर्शनमेरु नाम से सुमेरु पर्वत एक है। २. अकृत्रिम ७८ जिनमंदिर में ७८ जिनप्रतिमाएँ हैं। ३. १२३ देवभवनों में १२३ जिनप्रतिमाएं विराजमान हैं। ४. श्रीसीमंधर आदि तीर्थंकर के ६ समवसरण हैं। ५. हिमवान आदि ६ पर्वत हैं। ६. भरत, हैमवत, हरि,…
अतिशय क्षेत्र बाहुबली (कुम्भोज) दक्षिण भारत के कोल्हापुर जिले में यह क्षेत्र स्थित है। करीब ढाई सौ साल पहले नान्द्रे गाँव के पूज्य मुनि श्री १०८ बाहुबली महाराज यहाँ तपस्या एवं ध्यान करते थे। उनकी त्याग-तपस्या के प्रभाव से हिंसक शेर आदि उन्हें व किसी भी दर्शनार्थियों को नहीं देते थे, इसी कारण यह…
जैन गुफाएँ प्राचीनकाल में दिगम्बर जैन साध संहनन के कारण वनवासी परिव्राजक होते थे। अतएव बस्तियों से निर्जन वन अथवा पहाड़ियों पर बनी प्राकृतिक गुफाएँ उनके अस्थायी आश्रय होते थे । इन गुफाओं का ईसा पूर्व दूसरी तीसरी शताब्दी में एक व्यवस्थित जैन अधिष्ठान के रूप में उपयोग किया जाता था। पाँचवीं से बारहवीं शताब्दी…
विश्व के कोने कोने में विराजमान है जैनधर्म अमरीका, फिनलैण्ड, सोवियत गणराज्य, चीन एवं मंगोलिया, तिब्बत, जापान, ईरान, तुर्किस्तान, इटली, एबीसिनिया, इथोपिया, अफगानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान आदि विभिन्न देशों में किसी न किसी रूप में वर्तमानकाल में जैनधर्म के सिद्धान्तों का पालन देखा जा सकता है। इन देशों में मध्यकाल में आवागमन के साधनों का अभाव…
एक सच्ची बलिदानी गाथा अमरशहीद गौतम जैन २९ मई, १९७९ को मुम्बई के उपनगर थाणे में गौतम का जन्म हुआ। वह श्री सुमतप्रकाश एवं सुधा जैन की सबसे छोटी संतान थी जिसे प्यार से सभी छोटू कहते थे। अपने कार्य की वजह से सुमतजी इन्दौर (म० प्र०) में बस गये। गौतम ने सत्यसाई विद्या स्कूल…
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उदयपुर का बहादुर बेटा, जांबाज अमरशहीद अर्चित वार्डिया (जैन) अर्चित वार्डिया का जन्म झीलों की नगरी उदयपुर में २० जनवरी, १९८८ को हुआ था। आप बहुत धार्मिक परिवार से थे। श्वेताम्बर परम्परा के आचार्य देवेन्द्र मुनि के भतीजे थे। अर्चित अपनी माँ वीना वार्डिया, बहिन दिव्यांशी के साथ रहते थे। पिताजी का अवसान पहले ही…
समाज सेविका महिला रत्न पंडिता चंदाबाईजी माँ श्री चंदाबाईजी का जन्म १८९० में वृंदावन में हुआ था । बारह वर्ष की आयु में आपका विवाह आरानगर के संभ्रान्त प्रसिद्ध जमींदार जैन धर्मानुयायी धर्मकुमारजी के साथ हुआ । विवाह के कुछ समय बाद बाबू धर्मकुमारजी की मृत्यु हो गई । १३ वर्ष में ही वैधव्य दशा…
वन्दनीय व्यक्तित्व पं. माणिकचंद्रजी कौन्देय (१८८६-१९७०) पं. माणिकचंद्रजी कौन्देय का जन्म ग्राम चावली (आगरा) उत्तरप्रदेश में पिता लाला हेत सिंहजी, माता श्रीमति झल्लाबाई जी के यहाँ हुआ । आपको न्यायाचार्य, तर्करत्न, न्यायदिवाकर, सिद्धान्त महोदधि, स्याद्वाद वारिधि, दार्शनिक शिरोमणि, विद्वत् सम्राट्, प्रवचन चक्रवर्ती, सिद्धान्त भास्कर, न्यायरत्न की उपाधियाँ प्रदान की गईं। आप न्यायशास्त्र में निष्णात विद्वान्…