उपनय ब्रह्मचारी (Upnay brahmchari) ( ब्रह्मचारी का एक भेद ) ब्रह्मचारी के पाँच भेद हैं – उपनय, अवलम्ब, अदीक्षा, गुढ़ और नैष्ठिक । उपनय ब्रह्मचारी- जो मौंजी बन्धन विधि के अनुसार गणधर सूत्र को ( यज्ञोपवीत ) धारण कर उपासकाध्ययन आदि शास्त्रों का अभ्यास करते हैं और फिर गृहस्थ धर्म स्वीकार करते हैं उन्हें उपनय…
उपदेश (Updesh) ( प्रवचन ) रत्नत्रय से विभूषित आचार्य, उपाध्याय और साधु से तीन प्रकार से दिगम्बर मुनि ही मुख्य रूप से उपदेश देते हैं, किन्तु गौणरूप से विद्वान श्रावक भी उपदेश देते हैं । श्री गुणभद्रसूरि ने प्रवक्ता आचार्य के गुणों का वर्णन बहुत ही सुन्दर किया है- ‘‘प्राज्ञ: प्राप्त समस्तशास्त्र हृदय: प्रव्यक्तलोकस्थिति:, प्रास्ताश:…
उपचार विनय (Upchar vinay) ( विनय गुण का भेद ) उत्तम मार्दव धर्म का लक्षण बताते हुए पूज्य ज्ञानमति माताजी ने कविता में लिखा है- ‘मृदुत का भाव कहा मार्दव, यह मान शत्रु मर्दनकारी । यह दर्शन ज्ञान चरित्र तथा, उपचार विनय से सुखकारी । ‘ अर्थात् मृदु का भाव मार्दव है, यह मार्दव मानशत्रु…
उपचरित नय (Upcharit Nay) प्रमाण से जाने हुए पदार्थ के एक देश को ग्रहण करने वाले ज्ञाता के अभिप्राय विशेष को नय कहते है । नय के नव भेद हैं – द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक, नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र , शब्द , समभिरूढ़ और एवंभूत । नय की शाखा को उपनय कहते हैं । अथवा जो नयों…
उपघात (Upghat) जिस कर्म के उदय से बड़े सींग, अथवा मोटा पेट इत्यादि अपने ही घातक अंग हो । उसे उपघात नाम कर्म कहते हैं । जैसे – बारहसिंघा के सीग आदि । जो कर्म अवयवों को जीव की पीड़ा का कारण बना देता है अथवा विष, भृंग, खड़् पाश आदि जीव पीड़ा के कारण…
उपकार (Upkar) उपकरण का सामान्य अर्थ निमित्त रूप से सहायक होना है । वह दो प्रकार का है – स्वोपकार व परोपकार । यद्यपि व्यवहार मार्ग में परोपकार की महत्ता है पर अध्यात्म मार्ग में स्वोपकार ही अत्यन्त इष्ट है । धर्म और अधर्म द्रव्य का उपकार – गतिस्थिुत्युपग्रहै धर्माधर्मयोरूपकार: जीव और पुदगल की गति…
उपकरण (Upkaran) उपक्रियतेदनेनेत्युपकरणम् ’ जिसके द्वारा उपकार किया जाता है उसे उपकरण कहते है । दिगम्बर जैन साधुओं का संयम का जीव रक्षा का उपकरण पीछी , शौच शुद्धि उपकरण कमण्डलु और ज्ञान का उपकरण शास्त्र है ।
उन्मिश्र (Unmishr) ( आहार का एक दोष ) दिगम्बर साधु के आहार सम्बन्धित ४६ दोष बताए हैं । जिनमें एषणा दोष के दस भेद हैं- शंकित, मक्षित, निक्षिप्त, पिहित, संव्यवहरण, दायक, उन्मिश्र, अपरिणत, लिप्त और छोटित । उन्मिश्र- अप्रासुक द्रव्य से मिश्र आहार देना उन्मिश्र नाम का दोष है । ये अशन के दस दोष…
उद्वेलन (Udvelan) (भागहार का एक भेद ) संसारी जीवों के अपने जिन परिणामों के निमित्त से शुभकर्म और अशुभकर्म संक्रमण करें अर्थात् अन्य प्रकृति रूप परिणमें उसको भागहार कहते हैं । उसके उद्वेलन, विध्यात, अध:प्रवृत्त, गुणसंक्रमण और सर्वसंक्रमण के भेद से पाँच भेद हैं । गोम्मटसार कर्मकाण्ड में उद्वेलन प्रकृतियां बताई हैं- आहारदुगं सम्मं मिस्सं…