03.1 तीर्थ का स्वरूप एवं महत्व
तीर्थ का स्वरूप एवं महत्व दिगम्बर जैन तीर्थ एवं मन्दिर-एक संक्षिप्त इतिहास ‘तीर्थ’ शब्द की व्याख्या करते हुए जैनाचार्यों ने लिखा है- ‘‘तीर्यते संसार सागरो येनासौ तीर्थः’’ अर्थात् जिसके द्वारा संसाररूपी महासमुद्र को तिरा जावे-पार किया जावे उसे तीर्थ कहा जाता है। उस तीर्थ के प्रथमतः दो भेद किये हैं-भावतीर्थ और द्रव्यतीर्थ। आत्मा के परमशुद्ध…