काकन्दी (Kakndi)
काकन्दी (Kakndi) काकन्दी वर्तमान चौबीसी के नवमें तीर्थंकर भगवान पुष्पदन्त की जन्मभूमि है । पिता सुग्रीव एवं माता रामा थे । जन्मतिथि मगशिर शुक्ला एकम है भगवान पुष्पदन्तनाथ ने भी सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया ।
काकन्दी (Kakndi) काकन्दी वर्तमान चौबीसी के नवमें तीर्थंकर भगवान पुष्पदन्त की जन्मभूमि है । पिता सुग्रीव एवं माता रामा थे । जन्मतिथि मगशिर शुक्ला एकम है भगवान पुष्पदन्तनाथ ने भी सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया ।
बलभद्र-नारायण-प्रतिनारायण विजय, अचल, धर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दी, नन्दिमित्र, राम और पद्म ये नौ बलभद्र हुए हैं। त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुंडरीक, पुरुषदत्त, नारायण और कृष्ण ये नौ नारायण हुए हैं। अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मधुवैâटभ, निशुम्भ, बलि, प्रहरण, रावण और जरासंध ये नौ प्रतिनारायण हुए हैं।त्रिपृष्ठ आदि पाँच नारायणों में से प्रत्येक क्रम से श्रेयांसनाथ…
कांपिल्य(Kampily) कांपिल्यपुरी वर्तमान चौबीसी के १३वें तीर्थंकर भगवान विमलनाथ की जन्मभूमि है यह उत्तर प्रदेश में स्थित है, वर्तमान में यह कंपिला जी के नाम से जानी जाती है, यहां महासती द्रौपदी का महल भी था परन्तु अब मात्र उसके अवशेष ही मिलते है। भगवान विमलनाथ की माता का नाम जयश्यामा एवं पिता का नाम…
भरत से भारत : कब, क्यों और कैसे ? हमारे देश का नाम भारतवर्ष कब,क्यों एवं वैâसे पड़ा ? इस संदर्भ में विद्वानों में किंचित भ्रम है। अधिकांश विद्वान प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र एवं बाहुबली के भाई भरत के नाम पर इसे भारत मानते हैं किन्तु कतिपय विद्वान दुष्यन्त एवं शकुन्तला के पुत्र भरत…
बारह चक्रवर्ती भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुंथु, अर, सुभौम, महापद्म, हरिषेण, जयसेन और ब्रह्मदत्त क्रम से ये बारह चक्रवर्ती सब तीर्थंकरों की प्रत्यक्ष एवं परोक्ष वन्दना में आसक्त और अत्यन्त गाढ़ भक्ति से परिपूर्ण थे। भरत चक्रवर्ती ऋषभेश्वर के समक्ष, सगरचक्री अजितेश्वर के समक्ष तथा मघवा और सनत्कुमार ये दो चक्री धर्मनाथ और शान्तिनाथ…
श्री अजितनाथ से महावीर पर्यन्त तीर्थंकर परम्परा तीर्थंकर अजितनाथ इस जम्बूद्वीप के अतिशय प्रसिद्ध पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण तट पर ‘वत्स’ नाम का विशाल देश है। उसके सुसीमा नामक नगर में विमलवाहन राजा राज्य करते थे। किसी समय राज्यलक्ष्मी से निस्पृह होकर राजा विमलवाहन ने अनेकों राजाओं के साथ गुरू के समीप…
कषाय (Kashay ) आत्मा के भीतरी कलुष परिणाम को कषाय कहते है यद्यपि क्रोध ये चार ही कषाय जगप्रसिद्ध है पर इनके अतिरिक्त भी अनेकों प्रकार की कषायों का निर्देश आगम में मिलता है । हास्य, रति, अरति, शोक, भय,ग्लानि व मैथुन भाव से नोकषाय कही जाती है क्योंकि कषयवत् व्यक्त नहीं होती । इन…
कल्याणक (KalyanaK) जैनागम में प्रत्येक तीर्थंकर के जीवनकाल के पांच प्रसिद्ध घटनास्थलों का उल्लेख मिलता है उन्हें पंचकल्याणक के नाम से कहा जाता है क्योंकि वे अवसर जगत के लिए अत्यन्त कल्याण व मंगलकारी होते है जो जन्म से ही तीर्थंकर प्रकृति लेकर उत्पन्न हुए हैं उनके तो पांचो कल्याणक होते है परन्तु जिसने अन्तिम…
कल्पद्रुम (Kalpadrum) (कल्पद्रुम का तात्पर्य है इच्छित वस्तु का प्रदायक) जैनागम में श्रावक के षटआवश्यक कत्र्तव्यों का वर्णन करते हुए आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा कि ‘दाणं पूजा मुक्खो सावय धम्मो ण सावया तेण विणा अर्थात् श्रावक के धर्म में दान और पूजा ये दो क्रियाएं मुख्य है इनके बिना श्रावक नहीं हो सकता…
कर्म (Karm) कर्म शब्द के अनेक अर्थ है यथा – कर्मकारक, क्रिया तथा जीव के साथ बन्धने वाले विशेष जाति के पुद्गल स्कन्ध । कर्मकारक जगत, प्रसिद्ध है, क्रियाएं समवदान व अध:कर्म आदि के भेद से अनेक प्रकार है । कार्मण पुद्गलों का मिथ्यात्व, असंयम, योग और कषाय के निमित्त से आठ कर्म रूप, सातकर्मरूप…