ओम (Om) ओम अथवा ‘ऊँ ’यह एक अक्षर पांचो परमेष्ठियों के आदि पदस्वरूप है । अरहंत का प्रथम अक्षर ‘अ ’ , सिद्ध अर्थात् – अशरीरी का प्रथम अक्षर ‘अ ’ आचार्य का प्रथम अक्षर ‘आ’ उपाध्याय का प्रथम अक्षर ‘उ’ साधु या मुनि का प्रथम अक्षर ‘म् ’ इस प्रकार इन पांचो परमेष्ठियों के…
औद्देशिक दोष (Auddeshik Dosh) उपद्रवण, विद्रावण, परितापन और आरम्भरूप क्रियाओं के द्वारा जो आहार तैयार किया जाता है वह चाहे अपने हाथ से किया है अथवा दूसरे से कराया है अथवा करते हुए की अनुमोदना की है अथवा जो नीच कर्म से बनाया गया है वह औद्देशिक आहार है जो कि साधु के लेने योग्य…
औदारिक (Audarik) तिर्यंच व मुनष्य के इस इन्द्रियगोचर स्थूल शरीर को औदारिक शरीर कहते हैं इसके निमित्त से होने वाला आत्मप्रदेशों का परिस्पन्दन औदारिक कामयोग कहलाता है । शरीर धारण के प्रथम तीन समयों में जब तक इस शरीर की पर्याप्ति पूर्ण नही हो जाती तब तक इसके साथ कार्माण शरीर की प्रधानता रहने के…
औपशमिक भाव (Aupshamik Bhav) सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में औपशमिक भाव का लक्षण इस प्रकार कहा है – ‘‘उपशम: प्रयोजनमस्येत्यौपशमिक: ’ जिस भाव का प्रयोजन अर्थात् कारण उपशम है वह औपशमिक भाव है । धवला ग्रन्थ में आया है कि जो कर्मों के उपशम से उत्पन्न होता है उसे औपशमिक भाव कहते है क्योंकि गुणो के साहचर्य…
औषधि दान (Aushadhi Daan) स्व और पर के अनुग्रह हेतु अपना धन आदि वस्तु देना दान कहलाता है । इसके आहार, औषधि, शास्त्र और अभयदान यह चार भेद है । जिनको दान दिया जाता है उसे पात्र कहते है वह तीन प्रकार के है । उत्तम आदि पात्रों को किसी प्रकार का रोग हो जाने…
औपदेशिक सर्वार्थ सिद्धि ग्र्रन्थ में कहा है – आहारग्रहणात्पूर्व तस्य पात्रस्य निमित्तं यत्किमप्यशनपानादिकं कृतं तदौषदेशिकं भष्यते । अर्थात् आहार ग्रहण करने से पूर्व उस पात्र निमित्त से जो कुछ भी अशनपानदिक बनाये गये हैं उन्हें औपदेशिक कहते है । अध: कर्म और औपदेशिक ये दोनों ही द्रव्य पुदगलमयी है ।
औजार (Aujaar) चाकू , छुरी, कल्हाड़ी , आरा आदि लोहे से निर्मित उपकरण औजार हैं इसे शास्त्र भी कहते हैं इन शास्त्रों पर प्राणी रक्षा का उपदेश युग की आदि में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने दिया था जिसका वर्तमान में सदुपयोग के साथ दुरूपयोग भी हो रहा है । आज इन औजारों के आधुनिक…
औस्तुभास लवण समुद्र के बडवामुख आदि दिशा सम्बन्धी पातालों के दोनों तरफ एक – एक पर्वत है । पूर्व दिशा के पाताल की पश्चिम दिशा में जो पर्वत है उसका नाम औस्तुभास है तथा यहाँ पर जो व्यन्तर रहता है उसका भी नाम औस्तुभास है ।
औषधि ऋद्धि (Aushadhi Riddhi) असाध्य भी सर्व रोगो की निवृत्ति की हेतूभूत औषधि ऋद्धि आङ्ग प्रकार की है – आमर्ष, क्ष्वेल, जल्ल, मल, विट् , सर्व आस्याविष और दृष्टिनिर्विष । जिस ऋद्धि के प्रभाव से जीव पास में आने पर ऋषि के हस्त व पादाति के स्पर्शमात्र से ही निरोग हो जाते है वह आमर्षौषधि…