17. षट्खण्डागम की सिद्धान्तचिंतामणि टीका
षट्खण्डागम की सिद्धान्तचिंतामणि टीका से सरलतापूर्वक सिद्धान्त ज्ञान प्राप्त करें सिद्धान् सिद्ध्यर्थमानम्य, सर्वांस्त्रैलोक्यमूर्धगान् ।इष्ट: सर्वक्रियान्तेऽसौ, शान्तीशो हृदि धार्यते।।१।। संपूर्ण अंग और पूर्वों के एकदेश ज्ञाता, श्रुतज्ञान को अविच्छिन्न बनाने की इच्छा रखने वाले, महाकारुणिक भगवान श्रीधरसेनाचार्य हुए हैं। उनके मुखकमल से पढ़कर सिद्धान्तज्ञानी श्री पुष्पदंत और श्रीभूतबलि आचार्य हुए हैं। उन्होंने ‘अग्रायणीय पूर्व’ नामक द्वितीय...