परम पूज्य आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी द्वारा लिखित इस पुस्तक में जैन धर्म से सम्बंधित अनेक छोटे – बड़े विषयों को प्रश्नोत्तरी के माध्यम से अत्यंत सरल रूप में बतलाया गया है | इस पुस्तक के द्वारा आबाल गोपाल, युवा , वृध्द सभी को जैनधर्म बहुत सरलता से समझ में आता है |
भारतभूमि पर निवास करने वाले प्रत्येक मानव के लिए यथार्थ के निकट पहुँचने में अत्यंत सहायक होता है , इस श्रंखला में अनेक नाटकों ने समय-समय पर मानव जीवन को उन्नत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है | उस क्रम में प्रसंगोपात्त विषय को क्षण मात्र में प्रस्तुत करने वाली प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने अनेक काव्यमय कथाओं का लेखन किया है जिसका संग्रह इस पुस्तक में किया गया है |
इस जैन काव्य कथाएं पुस्तक में भगवान ऋषभदेव , भगवान पार्श्वनाथ ,भगवान महावीर , चा. च. आचार्य श्री शांतिसागर महाराज , आचार्य श्री वीरसागर महाराज , पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का जीवनवृत्त , मोक्षसप्तमी का महत्त्व , बाहुबली वैराग्य आदि कई एक कथानकों का वर्णन है जिसके माध्यम से मंचन करने वाले एवं देखने वाले प्राणियों को मनोरंजन , पुण्यवर्धन के साथ-साथ विशेष ज्ञानवर्धन भी होगा और जीवन निर्माण की प्रेरणा मिलेगी |
भक्ति में अचिन्त्य शक्ति होती है | देव- शास्त्र – गुरु की भक्ति में प्रयुक्त किये गए शब्द प्राणी के असाता को साता में परिवर्तित कर देते हैं और भक्ति करने के लिए सद्शास्त्र एक सशक्त माध्यम हैं जिससे प्राणी अपने असंख्यात गुणश्रेणी रूप कर्मों की निर्जरा कर आत्मा को परमात्मा तक बनाने में सफल हो जाता है |
सद्शास्त्र लेखन की श्रंखला में परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की सुशिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने लगभग २०० ग्रंथों की रचना की जिसमें से प्रस्तुत पुस्तक जैन काव्य कथाएं – भाग २ में अनेक महापुरुषों के कथानक हैं जैसे – अकलंक -निकलंक का कथानक , भरत का भारत – एक संक्षिप्त कथानक , जीवदया की कहानी , सुदर्शन सेठ की काव्य कथा , सुगंधदशमी की कथा , आंसू बन गए वरदान , में हूँ एक कन्या मोहिनी आदि | जो जीवन निर्माण के लिए अत्यंत उपयोगी हैं जिनके माध्यम से अपनी आत्मा का उत्थान कर अपने जीवन को समुन्नत बनाना चाहिए |
”ज्ञानामृत” ज्ञान का ऐसा अमृत है जिसके अंदर चारों अनुयोगों का समावेश है | उसका हर एक आलेख आगम का सार है , तत्विषयक सम्पूर्ण शास्त्र का निचोड़ है , इस भाग में ५२ विषयों का समावेश है | सभी विषय स्वयं में परिपूर्ण और उस शास्त्र से सम्बंधित पूर्ण जानकारी प्रदान करने वाले अत्यंत सरल भाषाशैली में निबद्ध है |
कुल मिलाकर यह ग्रन्थ अत्यंत उपयोगी है जिसका स्वाध्याय प्राणी के हृदय में ज्ञानज्योति को प्रस्फुटित करेगा |
हस्तिनापुर के राजा शांतनु के पुत्र राजा पाराशर के धृतराष्ट्र , पाण्डु और विदुर हुए जिसमें राजा पाण्डु के पुत्र पाँडव एवं धृतराष्ट्र के १०० पुत्र कौरव कहलाए | कौरवों की राज्य हड़पने की तीव्र अभिलाषा एवं पांडवों को नीचा दिखाने की तीव्र भावना से ही महाभारत का युद्ध हुआ यह सर्वविदित है |
इस युद्ध में जितनी अकालमृत्यु हुईं उतनी शायद कभी हुईं हों | हरिवंश पुराण एवं पाँडव पुराण से निकालकर पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने समय की मांग को देखते हुए उपन्यास का रूप देकर ” जैन महाभारत ” के नाम से दिया पुनः उसे और रोचक बनाते हुए परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने ”जैन महाभारत कथानक एवं प्रश्नोत्तरी ” के माध्यम से बहुत ही सरलता से समझाया है जिसे पढ़-सुनकर भव्यात्मा जीव अच्छी शिक्षाएं ग्रहण करके व्यसनों से दूर रहकर आत्मा को समुन्नत बनावें |
कौरव और पाँडव के पिता भाई-भाई थे |इन कौरव और पाँडवों में राज्य के निमित्त से बहुत भयंकर युद्ध का होना सर्वमान्य है | वर्तमान में टी. वी. के माध्यम से वैदिक संस्कृति में वर्णित महाभारत के दिखाए जाने से लोग जैन महाभारत से अनभिज्ञ हैं फिर भी इन दोनों ही संस्कृति के माध्यम से प्रत्येक प्राणी को यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि जुआ व्यसन सर्व अनर्थों की जड़ और सभी दुखोँ की खान है |
जैन महाभारत को अत्यंत सरलता से जानने के लिए छोटी -छोटी वार्ता के माध्यम से ” जैन महाभारत क्या है ?” नामक कृति में सम्पूर्ण महाभारत को रोचक शैली में प्रस्तुत किया गया है | २०० से अधिक ग्रंथों की रचयित्री प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी द्वारा रचित यह कृति सुधी पाठकों को जैनधर्म के वास्तविक तथ्यों से परिचित कराकर व्यसनमुक्त जीवन एवं आत्मोन्नति के मार्ग में सहकारी होवे यही मंगल भावना है |
हिंसा करने वाले अज्ञानी प्राणियों को अहिंसा के द्वारा अपने जीवन को समुन्नत बनाने की यह एक रोमांचक घटना है |
करुणा रस से ओत – प्रोत एक धीवर की एक मछली से प्रति की गई करुणा और महामुनि से लिए गए एक छोटे से नियम को पालन करने की महिमा इस जीवनदान नामक लघु शास्त्रीय कथानक में वर्णित है | ५०० ग्रंथों की रचनाकर्त्री जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के शास्त्रों का आलोढन कर इस रोमांचकारी कथा को अत्यन्त संक्षेप में प्रस्तुत कर सभी को अहिंसा धर्म के पालन की प्रेरणा प्रदान की है
जैन सिद्धांत के अनुसार सृष्टि की रचना में आठों का महत्वपूर्ण स्थान है | संसार और मोक्ष की समस्त व्यवस्था कर्म के आधीन है | इन कर्मों का आस्रव किस प्रकार होता है , कैसे ये प्राणी के साथ दूध – पानी के समान एकमेक हो जाते हैं और कैसे हम कर्मों से छूट सकते हैं ,इत्यादि प्रश्नों का समाधान हमें परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी द्वारा लिखित इस पुस्तक में प्राप्त हो जाता है , जिसका स्वाध्याय कर भव्य प्राणी इन कर्मों से बचने का सतत प्रयास कर सकते हैं और पुण्यास्रव कर एक दिन कर्मों पर विजय प्राप्त कर मुक्तिश्री का वरण कर सकते हैं