सरस्वती स्तोत्र
सरस्वती स्तोत्र -वंशस्थवृत्त- जयत्यशेषामरमौलिलालितं सरस्वति त्वत्पदपंकजद्वयम्। हृदि स्थितं यज्जनजाड्यनाशनं रजोविमुक्तं श्रयतीत्यपूर्वताम्।।१।। अर्थ —समस्त प्रकार के जो देव, उनके जो मुकुट, उन करके लालित अर्थात् जिनको समस्त देव मस्तक नवाकर नमस्कार करते हैं, ऐसी हे सरस्वती मात:! आपके दोनों चरणकमल सदा इस लोक में जयवंत हैं जो चरण-कमल मन में तिष्ठते हुए मनुष्यों की समस्त प्रकार…