(ब्रह्माद्वैतवादी और ज्ञानाद्वैतवादी का खंडन)
(ब्रह्माद्वैतवादी और ज्ञानाद्वैतवादी का खंडन) अद्वैतवादी-भेदैकांत में ये दोष होवें, ठीक ही है किन्तु हमारे यहाँ अभेदैकांत में यह बात नहीं है। द्रव्य और पर्याय को सर्वथा अभिन्न-एकरूप ही मानने पर इनका प्रमेयरूप होना युक्त है क्योंकि भेद तो अविद्या से कल्पित हैं और भेदों के मानने से अनवस्था भी आ जाती है।अनंत भेद प्रमाण…