समवसरण वन्दना
समवसरण वन्दना (गणिनी ज्ञानमती कृत) जय जय तीर्थंकर तीर्थनाथ, जय जय प्रभु धर्मचक्र ईश्वर। जय जयतु अनंतचतुष्टयमय, अंतर लक्ष्मीपति परमेश्वर।। जय जय जय प्रभु तुम समवसरण, त्रिभुवन लक्ष्मीयुत अतिशायी। जय जय जय सुरपति आज्ञा से, धनपति रचता जग सुखदायी।।१।। जय बारह योजन गोल शिला, या योजन एक१ नीलमणि की। धनपति ने पाँच सहस धनु ऊपर,…