श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार-चतुर्थ अधिकार
“…श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार-चतुर्थ अधिकार…” (पंडित सदासुख जी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार की वचनिका हिन्दी टीका में दोनों पंथों को आगम सम्मत माना है और अपनी-अपनी रुचि अनुसार दोनों को पूजा करने के लिए कहा है।) इहां ऐसा विशेष और जानना जो जिनेन्द्र के पूजन समस्त च्यार प्रकार के देव तो कल्पवृक्षनितैं उपजे गन्ध, पुष्प, फलादि सामग्री…