चौंसठ ऋद्धि स्तोत्र
चौंसठ ऋद्धि स्तोत्र (तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ के आधार से) —गीता छंद— चौबीस तीर्थंकर जगत में, सर्व का मंगल करें। गणधर गुरूगुण ऋद्धिधर, नित सर्व मंगल विस्तरें।। गुणरत्न चौंसठ ऋद्धियाँ, मंगल करें निज सुख भरें। मैं मन वचन तन से नमूँ, मेरे अमंगल दुख हरें।।१।। बुद्धि ऋद्धि के १८ भेद —अडिल्ल छंद— बुद्धि ऋद्धि के भेद अठारह…