वन्दनायोग्य-पीठ
वन्दनायोग्य-पीठ…. विजन्त्वशब्दमच्छिद्रं सुखस्पर्शमकीलकम् । स्थेयस्तार्णाद्यधिष्ठेयं पीठं विनयवर्धनम् ।।५।। अर्थात्-जो खटमल आदि प्राणियों से रहित हो, चर चर शब्द न करता हो, जिसमें छेद न हो, जिसका स्पर्श सुखोत्पादक हो, जिसमें कील कांटा वगैरह न हो, जो हिलता-डुलता न हो, निश्चल हो ऐसे तृणमय दर्भासन चटाई वगैरह, काष्ठमय-चौकी, तखत आदि, शिलामय-पत्थर की शिला जमीन आदि रूप…