द्वितीय परिच्छेद का सार
द्वितीय परिच्छेद का सार अद्वैत-द्वैत एकांत का निराकरण और स्याद्वाद सिद्धि (कारिका २४ से ३६ तक) एक ब्रह्माद्वैतवादी जनों का सम्प्रदाय है ये लोग कहते हैं कि ‘सर्वं वै खलु इदं ब्रह्म नेह नानास्ति कश्चन’। यह सारा जगत् एक ब्रह्म स्वरूप है, यहाँ भिन्न वस्तुएँ कुछ नहीं हैं। ये चेतन-अचेतन जितने भी पदार्थ दिख रहे…