श्री भरत चक्री के ९२३ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना
श्री भरत चक्री के ९२३ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना भरत चक्रि के विवर्द्धनादि-सुत नव सौ तेईस। दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ नत शीश।।१।।
श्री भरत चक्री के ९२३ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना भरत चक्रि के विवर्द्धनादि-सुत नव सौ तेईस। दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ नत शीश।।१।।
ऋषभदेव के श्री भरत आदि १०१ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना ऋषभदेव के पुत्र सब, भरत आदि शत एक। दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।
प्रथम पंच महापुरुष स्तुति (हिन्दी काव्य) जय जय आदीश्वर ऋषभदेव, इस युग के प्रथम तीर्थकर हो। जय जय कर्मारिजयी जिनवर, तुम परमपिता परमेश्वर हो।। जय युगस्रष्टा असि मषि आदिक, किरिया उपदेशी जनता को। त्रय वर्ण व्यवस्था राजनीति, गृहिधर्म बताया परजा को।।१।। निज पुत्र पुत्रियों को विद्या-अध्ययन करा निष्पन्न किया।। भरतेश्वर को साम्राज्य सौंप, शिवपथ मुनिधर्म…
पंचमहापुरुष स्तुति -अनुष्टुप् छंद:- श्रीमान् ऋषभदेवस्त्वं, प्रथमस्तीर्थकृन्मत:। सर्वा विद्याकला युष्मद्, नमस्तुभ्यं शिवाप्तये।।१।। प्रथमश्चक्रवर्ती यो, भरतेशो भुवि श्रुत:। नमस्तस्मै सुभक्त्याहं, यस्य नाम्नेह भारतम्।।२।। प्रथम: कामदेवो यो, बाहुबली महाबली। वर्षैक: प्रतिमायोगी, बलर्द्धिप्राप्तये नम:।।३।। गणीन्द्र: प्रथमो ज्ञेय:, ऋषभसेननामभाक्। चतुर्ज्ञानर्द्धिसंपन्नो, नमस्तुभ्यं स्वसंपदे।।४।। प्रथमो मोक्षगामी योऽ-नंतवीर्य: प्रभो: सुत:। गुणानन्तर्द्धिसंप्राप्त्यै, ते नमोऽस्तु सदा मुदा।।५।। पंचमहापुरूषांस्तान्, युगादौ प्रथमान् भुवि। पंचमज्ञानमत्याप्त्यै, एषां च…
नवरात्रि व्रत ‘मराठी व्रत कथा संग्रह’ पुस्तक में आया है कि- भरत महाराज ने आश्विन शुक्ला प्रतिपदा से नवमी तक नव दिन तक अखण्डरूप से भगवान की पूजा करके व्रत किया है। पुनश्च आश्विन शुक्ला दशमी को दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया है। इसीलिए इसका ‘‘विजया- दशमी’’ नाम प्रसिद्ध हुआ है।आज भी यह ‘‘नवरात्रि’’ व्रत…
ऋषभदेव शासन जयंती पर्व एवं व्रत भगवान ऋषभदेव को फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है। उसी समय चारों प्रकार के देवों के यहाँ अपने आप बिना बजाये बाजे बजने लगे। इंद्रों के मुकुट झुक गये आदि…..। दिव्य अवधिज्ञान से इंद्रोें ने प्रभु ऋषभदेव को केवलज्ञान हुआ जानकर अपनी-अपनी दिव्य सेना सजाकर…
भरत की दीक्षा-केवलज्ञान-मोक्ष अथानन्तर भरत महाराज ने किसी समय उज्ज्वल दर्पण में अपना मुखकमल देखकर परम सुख के स्थान स्वरूप भगवान् ऋषभदेव के पास से आये हुए दूत के समान सफेद बाल देखा।।३९२।। उसे देखकर जिनका सब मोहरस गल गया है, जिन्हें आत्मज्ञान उत्पन्न हुआ है, जो आत्महित को ग्रहण करने के लिए उद्युक्त हैं…
महायज्ञ, कल्पद्रुम आदि अनुष्ठान किए एवं जिनमंदिर, जिनप्रतिमाएं बनवाईं चैत्य चैत्यालयादीनां निर्मापणपुरस्सरम्। स चक्रे परमामिज्यां कल्पवृक्ष-पृथुप्रथाम्।।१०८।। अर्थात् भरत चक्रवर्ती ने अनेक जिनबिम्ब और जिनमंदिरों की रचना कराकर कल्पवृक्ष नाम का बहुत बड़ा यज्ञ (पूजन) किया।
भरत चक्रवर्ती ने तोरण-वंदनमाला, घंटे में जिनप्रतिमाएँ बनवाईं निर्मापितास्ततो घण्टा जिनबिम्बैरलंकृता:। परार्घ्यरत्ननिर्माणा: संबद्धा हेमरज्जुभि:।।८७।। लम्बिताश्च पुरद्वारि ताश्चतुर्विंशतिप्रमा:। राजवेश्म महाद्वारगोपुरेष्वप्यनुक्रमात२।।८८।। अर्थात् भरत चक्रवर्ती ने बहुमूल्य रत्नों से बने हुए, सुवर्ण की रस्सियों से बंधे हुए और जिनेन्द्रदेव की प्रतिमाओं से सजे हुए बहुत से घण्टे बनवाये तथा ऐसे-ऐसे चौबीस घंटे बाहर के दरवाजे पर, राजभवन के…
अग्नि कुण्ड तीन प्रकार के हवनक्रिया के प्रारंभ में अग्निकुण्ड तीन प्रकार के बनते हैं-चौकोन, गोल और त्रिकोन। इनमें चौकोर कुण्ड तीर्थंकर कुण्ड होता है।इन कुंडों में विधि के जानकार जैन, द्विज या श्रावक को रत्नत्रय का संकल्प पर अग्निकुमार देवों के इन्द्र के मुकुट से उत्पन्न तीन प्रकार की महाअग्नि को तीन कुंडों में…