8.8 समवसरण वंदना
समवसरण वंदना —दोहा— समवसरण तीर्थेश के, जिनमंदिर सत्यार्थ। मन वच तन से नित नमूँ, सिद्ध करें सर्वार्थ।।१।। —छंद—हे दीनबंधु— जय जय जिनेन्द्र तीर्थ नाथ, गुण मणी भरें। जय जय जिनेंद्र तीर्थ नाथ, जग सुखी करें।। जब घाति कर्म को हना, तब केवली हुये। तुम ज्ञान में तब लोक वा, अलोक दिख गये।।२।। तब इंद्र की…