अकेलापन!
[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार]] [[श्रेणी:शब्दकोष]] ==अकेलापन :== प्रत्येकम् प्रत्येकम् निजभाव्, कर्मफलमनुभवताम्। क: कस्य जगति स्वजन:? क: कस्य वा परजनो भणित:।। —समणसुत्त : ५१५ यहाँ प्रत्येक जीव अपने—अपने कर्मफल को अकेला ही भोगता है। ऐसी स्थिति में यहाँ कौन किसका स्वजन है और कौन किसका परजन ? एगो य मरदि जीवो एगो य जीवदि सयं। एगस्स जादि मरणं एगो…