रविव्रत पूजा
श्री रविव्रत पूजा …
रत्नत्रय पूजा अथ स्थापना (गीता छंद) वर रत्नत्रय जिनधर्म हैं, सम्यक्त्वरत्न प्रधान है। अष्टांगयुत सम्यक्त्व है, सम्पूर्ण गुण की खान है।। आचार आठ समेत सम्यग्ज्ञान रत्न महान है। तेरह विधों युत रत्न सम्यक्-चरित पूज्य निधान है।। दोहा भरतैरावत क्षेत्र में, चौथे पाँचवें काल। शाश्वत रहे विदेह में, धर्म जगत प्रतिपाल।।२।। ॐ…
भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनपूजा अथ स्थापना (नरेंद्र छंद) श्री मुनिसुव्रत तीर्थंकर के, चरण कमल शिर नाऊँ। व्रत संयम गुण शील प्राप्त हों, यही भावना भाऊँ।। मुनिगण महाव्रतों को पाकर, मुक्तिरमा को परणें। हम भी आह्वानन कर पूजें, पाप नशें इक क्षण में।।१।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेंद्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ…
श्री अनंतव्रत पूजा रचयित्री-आर्यिका अभयमती दोहा चौदह तीर्थंकर नमूँ, शुद्ध निरंजन रूप। आह्वानन कर थापना, शीघ्र तिरूँ भव रूप।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिअनंतनाथपर्यंतचतुर्दशजिनेन्द्रा:! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिअनंतनाथपर्यंतचतुर्दशजिनेन्द्रा:! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिअनंतनाथपर्यंतचतुर्दशजिनेन्द्रा:! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं। ‘ …
भगवान श्री शीतलनाथ जिनपूजा अथ स्थापना हे शीतल तीर्थंकर भगवन्! त्रिभुवन में शीतलता कीजे। मानस शारीरिक आगंतुक, त्रय ताप दूर कर सुख दीजे।। चारण ऋद्धीधारी ऋषिगण, निज हृदय कमल में ध्याते हैं। हम भी प्रभु का आह्वानन कर, सम्यक्त्व सुधारस पाते हैं।। ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।…
भगवान श्री शांतिनाथ जिनपूजा अथ स्थापना गीता छंद हे शांतिजिन! तुम शांति के, दाता जगत विख्यात हो। इस हेतु मुनिगण आपके, पद में नमाते माथ को।। निज आत्मसुखपीयूष को, आस्वादते वे आप में। इस हेतु प्रभु आह्वान विधि से, पूजहूँ नत माथ मैं।।१।। ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।…
भरतेश पूजा स्थापना-दोहा नाभिराज के पौत्र तुम भरत क्षेत्र के ईश। अष्टकर्म को नष्ट कर गये लोक के शीश।।१।। अष्ट द्रव्य से मैं यहाँ, पूजूं भक्ति समेत।…
आचार्य श्री वीरसागर महाराज की पूजन प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी स्थापना (नरेन्द्र छन्द) महावीर पथ के अनुयायी, वीरसिन्धु आचार्यप्रवर। शान्ति सिन्धु के प्रथम शिष्य, आर्यिका ज्ञानमति के गुरुवर।। उन गुरु शिष्य की गरिमा से, लगता है यह अनुमान सहज। तुम थे असली रत्नपारखी, दृष्टि तुम्हारी सदा सजग।।१।। उन आचार्य…
भगवान श्री विमलनाथ जिनपूजा अथ स्थापना- नरेन्द्र छंद अमल विमल पद पाकर स्वामी, विमलनाथ कहलाये। भाव-द्रव्य-नोकर्म मलों से, रहित…
विष्णुकुमार महामुनि पूजा रचयित्री -आर्यिका चन्दनामती वात्सल्यपर्व रक्षाबंधन हस्तिनापुरी से शुरू हुआ। वात्सल्यमूर्ति विष्णूकुमार मुनिवर का नाम प्रसिद्ध हुआ।। मुनियों का कर उपसर्ग दूर अपना वात्सल्य दिखाया था। विक्रिया ऋद्धि तप का प्रभाव जग की दृष्टी में आया था।।१।। दोहा सप्तशतक मुनिराज का, किया दूर उपसर्ग। इसीलिए सब आपका, अर्चन करें प्रसिद्ध।।२।।…