5.2 आगम पाठ एवं किसी की साहित्यिक कृतियों में संशोधन उचित नहीं है
आगम पाठ एवं किसी की साहित्यिक कृतियों में संशोधन उचित नहीं है काल परिवर्तन के साथ—साथ जिनेन्द्र भगवान की वाणी में आजकल कुछ ऐसे परिवर्तन होने लगे हैं जो दूध पानी की तरह इस प्रकार एकरूप हो रहे हैं कि साधारण मनुष्य तो उनकी वास्तविकता, अवास्तविकता के बारे में जान ही नहीं सकता है। आनन्दनिधान…