त्रिकाल चौबीसी विधान
त्रिकाल चौबीसी विधान 01. तीन चौबीसी पूजा (समुच्चय) 02. जंबूद्वीप भरतक्षेत्र भूतकाल तीर्थंकर पूजा 03. जंबूद्वीप भरतक्षेत्र वर्तमान तीर्थंकर पूजा 04.जंबूद्वीप भरतक्षेत्र भविष्यत्कालीन तीर्थंकर पूजा
त्रिकाल चौबीसी विधान 01. तीन चौबीसी पूजा (समुच्चय) 02. जंबूद्वीप भरतक्षेत्र भूतकाल तीर्थंकर पूजा 03. जंबूद्वीप भरतक्षेत्र वर्तमान तीर्थंकर पूजा 04.जंबूद्वीप भरतक्षेत्र भविष्यत्कालीन तीर्थंकर पूजा
जंबूद्वीप भरतक्षेत्र भविष्यत्कालीन तीर्थंकर पूजा स्थापना-गीताछंद इस भरत क्षेत्र विषे जिनेश्वर, भविष्यत् में होएंगे। उनके निकट में भव्य अगणित कर्मपंकिल धोएंगे।। चौबीस तीर्थंकर सतत वे, विश्व में मंगल करें। मैं पूजहूँ आह्वान कर, मुझ सर्वसंकट परिहरें।।१।। ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधिभरतक्षेत्रस्थभविष्यत्कालीनचतुर्विंशतितीर्थंकर समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
जंबूद्वीप भरतक्षेत्र वर्तमान तीर्थंकर पूजा अथ स्थापना-गीता छंद वृषभादि चौबिस तीर्थंकर इस भरत के विख्यात हैं। जो प्रथित जंबूद्वीप के संंप्रति जिनेश्वर ख्यात हैं।। इन तीर्थंकर के तीर्थ में सम्यक्त्व निधि को पायके। थापूँ यहाँ पूजन निमित अति चित्त में हरषाय के।।१।। ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधिभरतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीनचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
जंबूद्वीप भरतक्षेत्र भूतकाल तीर्थंकर पूजा स्थापना-गीता छंद जंबूद्रुमांकित प्रथम जंबूद्वीप में दक्षिण दिशी। वर भरत क्षेत्र प्रधान तहं षट्काल वर्ते नितप्रती।। जहं भूतकाल चतुर्थ में चौबीस तीर्थंकर भये। थापूँ यहाँ वर भक्ति पूजन हेतु मन हर्षित भये।।१।। ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि भरतक्षेत्रस्थ भूतकालीन चतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
त्रिकाल चौबीसी विधान तीन चौबीसी पूजा (समुच्चय) स्थापना-गीता छंद मंगलमयी सब लोक में, उत्तम शरण दाता तुम्हीं। वर तीन चौबीसी जिनेश्वर, तीर्थकर्ता मान्य ही।। इस भरत में ये भूत संप्रति, भावि तीर्थंकर कहे। आह्वान करके जो जजें, वे स्वात्मसुख संपति लहें।।१।। ॐ ह्रीं भूतवर्तमानभविष्यत्-द्वासप्ततितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
श्री वास्तु विधान 01. -मंगलाष्टक- 02. अथ भूमिशोधनम्-भूमिशोधन विधि 03. वास्तु विधाान के मण्डल पर करने की विधिा 04. श्री वास्तु विधान पूजा 05. नवग्रहशांति स्तोत्र 06. णमोकार मंत्र स्तवन
णमोकार मंत्र स्तवन —आर्यिका चंदनामती —शिखरिणी छंद— णमो अरिहंताणं, नमन है अरिहंत प्रभु को। णमो सिद्धाणं में, नमन कर लूँ सिद्ध प्रभु को।। णमो आइरियाणं, नमन है आचार्य गुरु को। णमो उवज्झायाणं, नमन है उपाध्याय गुरु…
नवग्रहशांति स्तोत्र रचयित्री-आर्यिका चन्दनामती -शंभु छन्द- सिद्धों का वंदन इस जग में, आतम सिद्धि का कारण है। इनकी भक्ति से भक्त करें, दुर्गति का सहज निवारण है।। सब तीर्थंकर भगवंत एक दिन, सिद्धि प्रिया को पाते हैं। इसलिए…
श्री वास्तु विधान पूजा -स्थापना द्धशंभु छंदऋ- अरिहन्त सि) को वन्दन कर, जिनराज चरण का धयान करूँ। भौतिक आधयात्मिक सुख हेतू, नव देवों का गुणगान करूँ।। कृत्रिम-अकृत्रिम चैत्यालय को, सादर विनत प्रणाम करूँ। जिनशासन रक्षक देव तथा, सब वास्तुदेव आह्नान करूँ।।1।। -दोहा- मंदिर महल मकान का, वास्तु रहे सुखकार। स्वस्थ सुखी हों भक्तजन, रहे सुखी…
वास्तु विधाान के मण्डल पर करने की विधिा वेद्यां मंडलमालिखार्चितसितैश्चूर्णैः सिताकल्पभृत्। नागाधाीशधानेशपीतवसना-लंकारपीतैश्च तैः।। नीलैर्नीरजनीलवेष सुमनो, रक्ताभरक्तैस्ततो। रक्ताकल्पककृष्णमेघविलसन्-कृष्णैश्च कृष्णप्रभ।।1।। पंचचूर्णस्थापनम्।। द्धमंडल पर पंचचूर्ण की स्थापना करेंऋ सन्मंगलस्यास्य कृते कृतस्य, कोणेषु बाह्यक्षितिमंडलस्य। वज्राणि चत्वारि च वज्रपाणिन्, वज्रस्य चूर्णेन लिखाद्य वेद्याम्।।2।। इति वज्रस्थापनम्।।…