यागमण्डल विधान (वृहद्)
आचार्य श्री नेमीचंद के द्वारा संस्कृत में रचित यागमंडल विधान का पूर्ण आधार लेकर हिंदी में पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमति माताजी ने इस विधान की रचना की है
इस विधान में भूत -वर्तमान -भविष्य कालीन तीन चौबीसी भगवंतों की पूजा अरिहंत, सिद्ध, साधु ,जिनधर्म, नवग्रह आदि पूजा का विशेष वर्णन है
मुख्य रूप से यह विधान पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं वेदी प्रतिष्ठा के शुभारंभ में किया जाता है और साथ ही नवग्रहशांति होम जलहोम अग्निहोम भी किया जाता है
इस विधान को करके पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं वेदी प्रतिष्ठा आदि को सानंद संपन्न करें यही मंगल भावना है