आत्म-तत्व द्वारा -आर्यिका सुदृष्टिमति माताजी प्र. २४३ आत्मा का सच्चा हित क्या है? और क्यों? उत्तर: आत्मा का यथार्थ हित स्वात्मानुभव की प्राप्ति करके आत्मानंद का विकास करना है और धीरे- धीरे बंधनों से मुक्त होकर परमात्म पद पाना है। इस वैराग्यमय कार्य में जितने भी राग (अनुराग) के कारण हैं, वे सब बाधक हैं।…
द्वारा -आर्यिका सुदृष्टिमति माताजी प्र. १ -णमोकार मंत्र का जाप्य क्यों? उत्तर- णमोकार मंत्र हमारी आत्मा की खुराक है, इसमें भावों की पुट जितनी मात्रा में लगती है उतना ही सशक्त हो जाती है और आत्मा पर लिप्त विकारों की परत को निकालकर फेंकती जाती है। इसीलिये तो प्रत्येक जैन, आबाल, वृद्ध सभी भक्ति से, अनुराग…
खान पान की शुद्धि कुछ लोग भक्ष्य-अभक्ष्य का ध्यान रखे बिना ही कहीं भी कुछ भी खा लेते हैं। अधिकांश ब्रेड, बिस्कुट टॉफी, चॉकलेट, डबलरोटी, टोस्ट, पिन्जा, केक आदि एकदम अभक्ष्य होते हैं, क्योंकि किन्हीं में अंडे का अंश पड़ता है, किसी में मछली का तेल तो किसी में कुछ, अमर्यादित बासी भोजन, 24 घंटे…
जैन धर्म के प्रतीक चिह्न ह्रीं – यह 24 तीर्थंकरों का वाचक बीज पद है। यह एक अक्षर वाला बीज मंत्र है। इसमें 24 तीर्थंकरों का अस्तित्व माना जाता है। इस मंत्र के ध्यान से मानसिक, शारीरकि शक्ति व ऊर्जा प्राप्त होने के साथ भावों में विशुद्धि होती है। ॐ- यह परमेष्ठी का वाचक मंत्र…