एडवांस डिप्लोमा इन जैनोलॉजी (प्रथम पत्र)
Advanc Diploma in Jainology… by Jambudweep Jain
आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व पूज्यपाद स्वामी द्वारा रचित पंचामृत अजभिषेक का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद कर गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने हमें प्रदान किया है ।
इस पुस्तक में उसी अभिषेक पाठ को निबंध किया है।
प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज की अक्षुण्ण परंपरा में अभी तक सात आचार्य हुए हैं, उन समस्त आचार्य परंपरा का दर्शन करने वाली पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी आज हमारे समक्ष विराजमान हैं, उसी परंपरा के समस्त आचार्य महाराज की पूजन, चालीसा, आरती ,भजन आदि का संग्रह इस पुस्तक में किया गया।
इस पुस्तक को पूज्य आर्यिका श्री चंदनामति माताजी ने हमें लिखकर प्रदान किया है।
इसे पढ़कर हम भी भक्ति मार्ग पर बढें, यही मंगल कामना है।
जैनधर्म में मुख्य रूप से तीन रत्न माने हैं देव शास्त्र गुरु। इन तीनों की उपासना करने से तीन रत्नों की (सम्यग्दर्शन -ज्ञान- चरित्र) प्राप्ति होती है
पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने समय-समय पर आचार्य श्री के गुणानुवाद रूप कुछ ना कुछ लघु एवं वृहद साहित्य लिखकर समाज को प्रदान किया है इसी श्रंखला में पूज्य माताजी ने प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर विधान (लघु) लिखकर प्रदान किया है
इस पुस्तक के प्रारंभ वंदना में आचार्य देव का जन्म से लेकर सल्लेखना पर्यंत जीवनवृत दिया है और जयमाला में उनके महिमामयी जीवन का वर्णन करते हुए उनके द्वारा किए गए व्रत, तप, स्वाध्याय और प्रभावनात्मक कार्यों का उल्लेख किया है
यह विधान सभी के लिए मंगलमय हो
पद्मनंदी पंचविंशतिका का ग्रंथ आचार्य श्री पद्मनंदी द्वारा लिखित है इस ग्रंथ के स्वाध्याय से आज हमे पूज्य गणिनी ज्ञानमति माताजी जैसा महान साधु प्राप्त हुआ है इस ग्रंथ में धर्मौपदेशामृत, यतिभावनाष्टक, उपासक संस्कार, सद्बोध चंद्रोदयाधिकार आदि 26 अधिकार हैं, जो एक से एक बढ़कर अनूठे हैं तभी पूज्य माताजी इस ग्रंथराज को सभी इसके स्वाध्याय हेतु हमेशा प्रेरणा देती हैं।
पूज्य माता जी की प्रेरणा से श्रीमती त्रिशला जैन लखनऊ (जो पूज्य गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माताजी कि गृहस्थावस्था की लघु बहन है)ने इनका बहुत सुंदर पद्यानुवाद किया है।
इसका स्वाध्याय करके सभी अपने जीवन में धर्म को धारण करें यही मंगल भावना है
Jain Dharm & Lord Risha… by Jambudweep Jain
स्वाध्याय को परम तप माना गया है | परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी एक सिद्धहस्त लेखिका हैं | महान गुरु की उन महान शिष्या ने अपनी गुरुमाता से चारों अनुयोगों का ज्ञान प्राप्त कर समय- समय पर अनेक आलेख लिखे जिसका सुन्दर समन्वय जिनधर्मामृत के रूप में आपके समक्ष है | माला में पिरोये एक-एक मोती की तरह अत्यंत सुन्दर और महत्वपूर्ण इस ग्रन्थ में १९ विषयों का समावेश है जिसके माध्यम से चारों अनुयोगों का ज्ञान आधुनिक भाषाशैली में प्राप्त किया जा सकता है | ऐसे महान ग्रन्थ की प्रदात्री पूज्य माताजी को कोटि-कोटि वंदन |
अनादि काल से सभी संसारी प्राणी चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करते आ रहे हैं। 84 लाख योनि के परिभ्रमण से छूटने के लिए पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमति माताजी ने 84 लाख योनि निवारण व्रत बनाया है इस व्रत को करने से दुखों से छुटकारा पा सकते हैं लघु रूप में इसमें 14 व्रत एवं वृहद रूप में 84 व्रत है।
इस व्रत को आप करके अपने जीवन को धन्य करें यही मंगल भावना है।अनादि काल से सभी संसारी प्राणी चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करते आ रहे हैं। 84 लाख योनि के परिभ्रमण से छूटने के लिए पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमति माताजी ने 84 लाख योनि निवारण व्रत बनाया है इस व्रत को करने से दुखों से छुटकारा पा सकते हैं लघु रूप में इसमें 14 व्रत एवं वृहद रूप में 84 व्रत है।
इस व्रत को आप करके अपने जीवन को धन्य करें यही मंगल भावना है।
“तीर्यते संसार येन असौ तीर्थ:” जिससे संसार समुद्र तिरा जाए, उसे तीर्थ कहते हैं, शास्वत तीर्थ दो हैं- अयोध्या और सम्मेद शिखर।
इसके अतिरिक्त जहां तीर्थंकर भगवंतों के गर्भ, दीक्षा व केवल ज्ञान कल्याणक हुए अथवा जहां से अन्य विशेष महापुरुष सिद्ध हुए या जहां पर तीर्थंकर प्रतिमाओं का कोई विशेष चमत्कार हुआ वह सभी तीर्थ संज्ञा से सुशोभित है।
ऐसे ही महाराष्ट्र प्रांत में लगभग 44 तीर्थ हैं जिनका सिरमौर्य मांगीतुंगी जी है जहां भगवान आदिनाथ की अखंड पाषाण में 108 फुट विश्व की सबसे ऊंची एकमात्र प्रतिमा विराजमान है
परमपूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामति माताजी द्वारा रचित महाराष्ट्र के समस्त तीर्थों की वंदना (महाराष्ट्र तीर्थक्षेत्र विधान) के माध्यम से कर सकते हैं
यह विधान सबके लिए मंगलमय हो