जैन काव्य कथाएँ (भाग-२)
भक्ति में अचिन्त्य शक्ति होती है | देव- शास्त्र – गुरु की भक्ति में प्रयुक्त किये गए शब्द प्राणी के असाता को साता में परिवर्तित कर देते हैं और भक्ति करने के लिए सद्शास्त्र एक सशक्त माध्यम हैं जिससे प्राणी अपने असंख्यात गुणश्रेणी रूप कर्मों की निर्जरा कर आत्मा को परमात्मा तक बनाने में सफल हो जाता है |
सद्शास्त्र लेखन की श्रंखला में परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की सुशिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने लगभग २०० ग्रंथों की रचना की जिसमें से प्रस्तुत पुस्तक जैन काव्य कथाएं – भाग २ में अनेक महापुरुषों के कथानक हैं जैसे – अकलंक -निकलंक का कथानक , भरत का भारत – एक संक्षिप्त कथानक , जीवदया की कहानी , सुदर्शन सेठ की काव्य कथा , सुगंधदशमी की कथा , आंसू बन गए वरदान , में हूँ एक कन्या मोहिनी आदि | जो जीवन निर्माण के लिए अत्यंत उपयोगी हैं जिनके माध्यम से अपनी आत्मा का उत्थान कर अपने जीवन को समुन्नत बनाना चाहिए |