नियमसार प्राभृत-एक अनुचिन्तन
प्रसिद्ध जैनाचार्य आचार्य श्री कुन्दकुन्द की आध्यात्मिक रचनाओं में नियमसार ग्रन्थ भी उनकी एक आध्यात्मिक रचना है | यह नियमसार मार्ग और मार्ग का फल दो रूप है | इस मार्ग का अर्थ रत्नत्रय का पालन है और फल का अर्थ मोक्ष है | इस ग्रन्थ में १२ अधिकार हैं | इस नियमसार ग्रन्थ पर गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने अनेक रचनाएं लिखीं उनमें स्याद्वाद चन्द्रिका टीका भी एक है उसी पर उनकी शिष्या परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी ने एक समीक्षात्मक अध्ययन करके गागर में सागर के समान एक खजाने की कुंजी प्रदान की है जो सभी को समीचीन बोध प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगी |