श्री पंचकल्याणक विधान (लघु)
जो स्व और पर का कल्याण करने में समर्थ होते हैं वे तीर्थंकर महापुरुष पंचकल्याणकों से समन्वित होते हैं | तीर्थंकर के अलावा अन्य किसी भी महापुरुष के पंचकल्याणक नहीं हो सकते हैं | गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, निर्वाण यह पंचकल्याणक हैं जो इंद्रों द्वारा मनाए जाते हैं,
उन्हीं पंचकल्याणकों से समन्वित तीर्थंकर भगवान की भक्ति करने के लिए इस विधान की रचना पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने की है | इसमें सभी तिथियाँ उत्तरपुराण के आधार से हैं |
जिन उज्जवल परिणामों से पूज्य माताजी ने उनके कल्याणकों का परिचय निबद्ध कर हमें पूजा और स्वाध्याय दो कर्तव्यों का पुण्यार्जन करने का अवसर प्रदान किया है उन्हीं शुभ भावों को संजोकर पूजनके रहस्य को समझकर अपने मनुष्य जन्म को सार्थक करे यही मंगल भावना है |