भजन
भजन तर्ज—कांची हो कांची रे…… माता हो माता रे ज्ञान तेरा सांचा, सांची तेरी हर बात है। हो……।। टेक.।। द्वादशांग वाणी का आधार लेकर, कुन्दकुन्द वाणी में साकार होकर। जिनवाणी कहती हो, जिनवाणी रचती हो, निजवाणी का रस घोल के।। हो…… माता……।।१।। गुरु शांतिसागर का दर्शन किया है, श्री वीरसागर से दीक्षा लिया है। ज्ञानमती…