श्री नेमिनाथ स्तोत्र
“…श्री नेमिनाथ स्तोत्र…” -शंभुछंद- भव वन मेंं भ्रमते—भ्रमते अब, मुझको कथमपि विज्ञान मिला। हे नेमि प्रभो! अब नियम बिना, निंह जाने पावे एक कला।। मैं निज से पर को पृथक् करूँ, निज समरस में ही रम जाऊँ। मैं मोह ध्वांत को नाश करूँ, निज ज्ञान सूर्य को प्रकटाऊँ।।१।। शौरीपुर में प्रभु जन्में तक, रत्नों की…