यथाख्यात चारित्र!
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यथाख्यात चारित्र–Yathakhyata Charitra. Perfect Conduct. वीतराग भाव, कषायोकेसवर्था अभाव से प्रादुर्भूत आत्मा की शुधि विशेष को यथाख्यात चारित्र कहते है” यह 11वे, 12वे, गुणस्थान में होता है”
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यथाख्यात चारित्र–Yathakhyata Charitra. Perfect Conduct. वीतराग भाव, कषायोकेसवर्था अभाव से प्रादुर्भूत आत्मा की शुधि विशेष को यथाख्यात चारित्र कहते है” यह 11वे, 12वे, गुणस्थान में होता है”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संयतासंयत – Sanyataasanyata. One having control & restraints with minor vows. एकदेश रूप व्रतों के या अणुव्रत के धारक जीव ” व्रती श्रावक, क्षुल्लक व ऐलक ये संयतासंयत कहलाते हैं “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यथाकाल उदय–Yathakala udaya Fruition of karmic nature on maturity. स्तिथिपूर्ण होने पर समय पर कर्मो का उदय में आना “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यत्रतत्रानुपूर्वी–Yatratatranupurvi. At random exposition or accounting. आनुपूर्वी के 3 भेदो का एक भेद; क्रम के बिना जहां कही से भी कथन अथवा गणना करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संयत – Sanyata. One with control & restraints, Another name of Digambar Jaina saint. महाव्रती श्रमण संयत कहलाता है ” संयत जीव छठे से चौदहवें गुणस्थान तक 9 गुणस्थानों में पाये जाते हैं ” दिगम्बर मुनि का अपरनाम “
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यत्याचार–Yatyachar. Name of a book written by Acharya Padmanandi – 7, Well conduct of saints, Great treatises containing description of saints’ conduct. आचार्य पद्मनंदी -7(ई. 1305) की एक रचना,साधुओ के आचार-विचार को यत्याचार कहते है” जिन ग्रंथों में यतियों के आचार आदि का वर्णन हो वे भी यत्याचार कहलाते है” जैसे- मूलाचार, भगवती…
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यात्नाचार–Yatnaachar. Attempt for good & careful conduct. सावधानी एवं उत्साहपूर्वक दोष रहित आचरण करना”
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यति सम्मेलन– Yati Sammelan. Conference of saints. दिगम्बर जैन सभी साधुओ (चतुर्विधसंघो) का एक जगह एकत्रित होना, मिलना” प्रति पाँच वर्ष में युगप्रतिक्रमण के नाम से संघों के मिलने का आगम प्रमाण मिलता है” श्रीधरसेनाचार्य ए समय वेणाक नदी के तट पर ऐसा यतिसम्मेलन हुआ था जहा से दो मुनि शिष्यों को उन्होंने…
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यतिवृषभ–Yativrashabh. Name of a great Digambar Acharya who wrote many books like ‘Tiloy Pannati’ etc. कषाय प्राभ्रत के चूर्णसूत्र, तिलोय पण्णत्ति आदि के रचयिता एक आचार्य, ये आर्यमंक्षु व नागहस्ति के शिष्य (ई. 143–173) थे”