वीतराग धर्मध्यान!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीतराग धर्मध्यान –VitaragaDharmadhyana. Supreme stage of religious meditation (Dharmadyan) to the knowledge of supreme soul. धर्मध्यान की उत्क्रष्ट स्थिति – सातवें से दसवें गुणस्थान में होने वाली ध्यान अवस्था “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीतराग धर्मध्यान –VitaragaDharmadhyana. Supreme stage of religious meditation (Dharmadyan) to the knowledge of supreme soul. धर्मध्यान की उत्क्रष्ट स्थिति – सातवें से दसवें गुणस्थान में होने वाली ध्यान अवस्था “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीतृरागता –Vitaragata. State of passionlessness, Freeness from worldly attachment.” सच्चे आप्त (भगवान) के तीन मुख्य गुणों सर्वज्ञंता, वीतरागता तथा हितोपदेशिता में से एक गुण ” जिसमें राग, द्वेष एवं मोह का अभाव होता है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीतराग छध्न्स्थ –VitaragaChadmastha. Souls at the 11th – 12th stage of spiritual devel-opment. ११ वें व १२ वें गुणस्थान वाले वीतराग छध्न्स्थ हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीतरागचारित्र –Vitaragacharitra. Deep engrossment in meditation by great Jainasainits. रागादि विकल्पों से रहित होकर आत्मा में रमणता या लीनता ” शुक्ल्ध्यान, शुध्दोपयोग, उपेक्षा संयम, निश्चय चारित्र, वीतरागचारित्र ये एकार्थवाची हैं ” ये सम्यग्दृष्टि जीवों के होता है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीतराग कथा –Vitaraga Katha. Impartial wise discussion, a witty dialogue or discussion between learned persons. गुरु और शिष्य के बीच या रागद्वेष से विमुख विद्वानों के बीच तत्त्व निर्णय के लिए जो चर्चा चलती है उसे वीतराग कथा कहते हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीतराग –Vitaraga. One free from all passions and attachments, or passionless one. जहां मोह का उदय न राह हो ” आत्म साधन के द्वारा जिन्होंने राग-द्वेष को नष्ट कर दिया है उन्हें वीतराग कहते हैं ” अरिहंत भगवान पूर्ण वितारागी होते हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीची –Vichi. A wave, a wave of pleasure. वीची वाग्लहरी को कहते हैं, लहर, प्रसन्नता “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विचार –Vichara. Consideration, Contemplation. विषय के प्रथम ज्ञान को वितर्क कहते हैं ” उसी का बारबार चिंतवन विचार कहलाता है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विहारक्रिया संस्कार –ViharakriyaSamskara. Auspicious activity pertaining to the spatial movement of Tirthankar (Jaina-Lord) from one place to another. गर्भान्वयी की एक क्रिया, धर्मचक्र को आगे करके तीर्थकरों का आकाशमार्ग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना विहारक्रिया हैं “