(चतुर्थ वलय में २७ अर्घ्य)
(चतुर्थ वलय में २७ अर्घ्य) दोहा- धर्मचक्र के अधिपती, त्रिभुवन पति जिनराज। सुमन चढ़ाकर पूजहूँ, नमूँ नमूँ नत माथ।।१।। अथ चतुर्थवलये पुष्पांजलिं क्षिपेत्। —नरेन्द्र छंद— मान सहित काया से जो संरंभ करे नित रुचि से। नीच गोत्र में जन्म धरे फिर दु:ख सहे नित तन से।। इनसे विरहित श्रीसुपार्श्व को कोटी-कोटि नमन हो। पंचेन्द्रिय के…