विविक्त वसतिका!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विविक्त वसतिका – Vivikta Vasatika. Lonely or isolated place (hermitage). एकांत , ध्यान आदि के योग्य पवित्र-निर्दोष, साधु के रहने का स्थान “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विविक्त वसतिका – Vivikta Vasatika. Lonely or isolated place (hermitage). एकांत , ध्यान आदि के योग्य पवित्र-निर्दोष, साधु के रहने का स्थान “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वानरद्वीप –Vaanaradviipa.: Name of an island of Lanka. लंका का रमणीय एवं सुरक्षित द्वीप ,रक्षक वंशी राजा कीर्तिध्वज ने यह द्वीप अपने साले श्रीकंठ को दिया था ” श्रीकंठ ने इसी द्वीप के किष्कु पर्वत पर किष्कुपुर नगर बसाया था “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शुद्ध – Shuddha. Pure, free from faults, i.e. sins or errors. विशुद्ध, निर्दोष, विमल ” द्रव्य, स्वभाव, परमभाव, परमार्थ तत्व, शुद्ध, परम ये सब एकार्थवाची हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विविक्त – Vivikta. Isolated, Solitary, Lonely, Separated. अकेला, एकाकी, निर्दोष “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वादीभसिंह (ओडयदेव )- Vaadibhasingha (Odayadeva). Name of the disciple of Pushpasen. अकलंक देव के गुरु भाई पुष्पसेन से शिष्य (ई.620 – 680) – छत्र चूड़ामणि, गद्य चिंतामणि के रचयिता “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विवाहिता स्त्री – Vivahita Stri. Married Woman, accepted ritually. देवशास्त्रगुरु को नमस्कार कर तथा अपने भाई – बन्धुओं की साक्षीपूर्वक जिस कन्या के साथ विवाह किया जाता है वह विवाह स्त्री कहलाती है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वादीभसिंह (अजितसेन )- Vaadibhasingha (Ajitasena).: Name of the disciple of Vadiraj-2. वादिराज-2 के शिष्य ,यादवराज ऐरेयंग शांतराज तेलगु (ई.-1103 ) के गुरु “स्याद्वाद सिद्धि के रचयिता “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विवाह पटल – Vivaha Patala. Name of a treatise written by Acharya Brahmadev. आचार्य ब्रह्मदेव (ई. १२९२-१३२३) द्वारा रचित एक ग्रंथ “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वादी – Vaadii.: Expert in spiritual argument,Preceptor possessing knowledge of main principle of Jainism,The plaintiff, a complainant. शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त करने में कुशल ,मुनियों का एक भेद-सिद्धांतो के प्रतिष्ठापक मुनि,तीर्थंकरों की समवशरण सभा में ऐसे मुनियों का समूह रहता है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विवाह क्रिया – Vivaha Kriya. An auspicious activity- marriage according to tradition. गर्भान्वय की ५३ क्रियाओं में १७ वीं क्रिया; सिध्द पूजन व तीन अप्रिय की विधिपूर्वक पूजन करते हुए, अगिन प्रदक्षिणा देते हुए परिवार व समाज की साक्षी में सजाति कुलीन कन्या का पाणिग्रहण करना “