मंगलाचरण
मंगलाचरण…. भवपाश्च्छिदे तुभ्यं, श्रीसुपार्श्व! नमो नम:। संसृतिपार्श्वदूराय, मुक्तिपार्श्वविधायिने।।१।।
मंगलाचरण…. भवपाश्च्छिदे तुभ्यं, श्रीसुपार्श्व! नमो नम:। संसृतिपार्श्वदूराय, मुक्तिपार्श्वविधायिने।।१।।
अकृत्रिम चैत्यवृक्ष…. 1. मंगलाचरण 2. चैत्यवृक्ष का वर्णन (अधोलोक के चैत्यवृक्ष) 3. भवनवासी देवों के जिनमंदिर 4. भवनवासी देवों के चैत्यवृक्ष 5. इन्द्रों के यहाँ ओलगशाला के आगे चैत्यवृक्ष 6. व्यंतर देवों के जिनमंदिर 7. व्यंतर देवों के चैत्यवृक्ष (तिलोयपण्णत्ती से) 8. व्यंतर देवों के चैत्यवृक्ष (सिद्धान्तसार दीपक से) 9. व्यंतर देवों के चैत्यवृक्ष (लोकविभाग…
समवसरण चैत्यवृक्ष स्तोत्र……. —शंभु छंद— चौबिस जिनवर के समवसरण में, चौथी उपवन भू मानी है। चारों दिश इक इक चैत्य वृक्ष, चहुँदिश जिनप्रतिमा मानी हैं।। चारों दिश की जिन प्रतिमा के, सन्मुख में मानस्तंभ खड़े। मैं वंदूं शीश नमा करके, दिन पर दिन सुख सौभाग्य बढ़े।।१।। जय जय श्री जिनवर समवसरण, जयजय चौथी उपवन भूमी।…
प्रशस्ति —चौबोल छंद— श्री शांति कुंथु अरनाथ प्रभू ने, जन्म लिया इस धरती पर। यह हस्तिनागपुरि इंद्रवद्य, रत्नों की वृष्टि हुई यहाँ पर।। यहाँ जम्बूद्वीप बना सुंदर, जिनमंदिर हैं अनेक सुखप्रद। मेरा यहाँ वर्षायोग काल, स्वाध्याय ध्यान से है सार्थक।।१।। इस युग के चारित्र चक्री श्री, आचार्य शांतिसागर गुरुवर। बीसवीं सदी के प्रथमसूरि, इन पट्टाचार्य…
चैत्यवंदनाष्टक… (गणिनी ज्ञानमती विरचित) त्रिभुवन के जितने चैत्यालय, अकृत्रिम उनको नित वंदूं। भव भव के संचित पाप पुंज, उन सबको इक क्षण में खंडूं।। असुरों के चौंसठ लाख नागसुर, के चौरासी लाख कहे। वायुसुर के छ्यानवे लाख सुपरण के बाहत्तर लक्ष कहे।।१।। विद्युत् अग्नी स्तनित उदधि, दिव्â द्वीपकुमार भवनवासी। इन छह में पृथव्â-पृथव्â जिनगृह, छीयत्तर…
समवसरण में छठी भूमि में सिद्धार्थ वृक्षों में जिनप्रतिमायें (आदिपुराण से) पुष्पपल्लवोज्ज्वलेषु कल्पपादपोरुकाननेषु हारिषु श्रीमदिन्द्रवन्दिताः स्वबुध्नसुस्थितेद्धसिद्धबिम्बका द्रुमाः। सन्ति तानपि प्रणौम्यमूं नमामि च स्मरामि च प्रसन्नधीः स्तूपपंक्तिमप्यमूं समग्ररत्नविग्रहां जिनेन्द्रबिम्बिनीम्१।।१९०।। समवसरण में छठी भूमि में सिद्धार्थ वृक्षों में जिनप्रतिमायें (आदिपुराण से) फूल और पल्लवों से देदीप्यमान और अतिशय मनोहर कल्पवृक्षों के बड़े-बड़े वनों में लक्ष्मीधारी इन्द्रों के…
समवसरण में उपवनभूमि में चैत्यवृक्षों में जिनप्रतिमायें (आदिपुराण से) बभासे वनमाशोकं शोकापनुदमङ्गिनाम्। रागं वमदिवात्मीयमारत्तै पुष्पपल्लवैः१।।१८०।। पर्णानि सप्त विभ्राणं वनं सप्तच्छदं बभौ। सप्तस्था नानि बाभर्तुर्दर्शयत्प्रति पर्व यत्।।१८१।। चाम्पकं वनमत्राभात् सुमनोभरभूषणम्। वने दीपाङ्गवृक्षाणां विभुं भक्तुमिवागताम्।।१८२।। कम्रमाम्रवनं रेजे कलकण्ठीकलस्वनैः। स्तुवानमिव भक्त्यैनमीशानं पुण्यशासनम्।।१८३।। अशोकवनमध्येऽभूदशोकानोकहो महान्। हैमं त्रिमेखलं पीठं समुत्तुङ्गमधिष्ठितः।।१८४।। चतुर्गोपुरसंबद्धत्रिसालपरिवेष्टितः । छत्रचामरभृङ्गारकलशाद्यैरुपस्कृतः ।।१८५।। जम्बूद्वीपस्थलीमध्ये भाति जम्बूद्रुमो यथा। तथा वनस्थलीमध्ये…
समवसरण में चैत्यवृक्ष व सिद्धार्थवृक्ष पर जिनप्रतिमाएँ (तिलोयपण्णत्ती से) तत्तो चउत्थउववणभूमीए असोयसत्तवण्णवणं । चंपयचूदवणाणं पुव्वादिदिसासु राजंति।।८०३।। विविहवणसंडमंडणविविहणईपुलिणकीडणगिरीहिं। विविहवरवाविआहिं उववणभूमीउ रम्माओ।।८०४।। एक्केक्काए उववणखिदिए तरवो यसोयसत्तदला। चंपयचूदा सुंदरभूदा चत्तारि-चत्तारि।।८०५।। चामरपहुदिजुदाणं चेत्ततरूणं हवंति उच्छेहा। णियणियजिणउदएहिं बारसगुणिदेहिं सारिच्छा।।८०६।। ६०००।५४००।४८००।४२००।३६००।३०००।२४००।१८००।१२००।१०८०। ९६०। ८४०। ७२०। ६००। ५४०। ४८०। ४२०। ३६०। ३००। २४०। १८०। १२०। २७ । २१। मणिमयजिणपडिमाओ अट्ठमहापाडिहेरसंजुत्ता। एक्केक्कस्ंिस चेत्तद्दुमम्मि चत्तारि…
स्वर्गों में चैत्यवृक्ष एवं मानस्तम्भ में तीर्थंकर के वस्त्राभरणादि (लोकविभाग से) तत्र िंसहासने दिव्ये सर्वरत्नमये शुभे। स्वैरं निषण्णो विस्तीर्णे जयशब्दाभिनन्दितः१।।२५४।। वृतः सामानिवैर्देवैस्त्रायिंस्त्रशैस्तथैव च। सुखासनस्थैः श्रीमद्भिस्तन्मुखोन्मुखदृष्टिभिः।।२५५।। चित्रभद्रासनस्थाभिर्वामदक्षिणपार्श्वयोः। संक्रीडयमानो देवीभिः क्रीडारतिपरायणः।।२५६।। तत्र योजनविस्तीर्णः षट्कृतिं च समुच्छ्रितः। स्तम्भो गोरुतविस्तारधाराद्वादशसंयुतः।।२५७।। वङ्कामूर्तिः सपीठोऽस्मिन् क्रोशतत्पाददीर्घकः। व्यासाश्च रत्नशिक्यस्थास्तिष्ठन्ति च समुद्गकाः।।२५८।। । १ । १/४। सक्रोशानि हिषट् तूर्ध्वं योजनान्यसमुद्गकाः। क्रोशन्यूनानि तावन्ति अधश्चाप्यसमुद्गकाः।।२५९।। ।२५/४।…
सौधर्म स्वर्ग में जिनमंदिर-चैत्यवृक्ष (लोक विभाग से) सौधर्मे व सभैशाने शेषेन्द्राणां सभास्तथा। उपपातसभाश्चैव अर्हदायतनानि च१।।२६३।। शतार्धायामविस्तीर्णाः पुरस्तान्मुखमण्डपाः। वेदिकाभिः परिक्षिप्ता नानारत्नशतोज्ज्वलाः।।२६४।। ।१००। ५०। सामानिकादिभिः सार्धम् इन्द्राः पर्वसु सादराः। पूजयन्त्यर्हतां तेषु कथाभिरपि चासते।।२६५।। कल्पेषु परतश्चापि सिद्धायतनवर्णना। आयागाः खलु कल्पेषु सभा ग्रैवेयतः स्मृताः।।२६६।। योजनाष्टकमुद्विद्धा तावदेव च विस्तृता। उपपातसभेन्द्राणां त्रायिंस्त्रशवतां स्मृता।।२६७।। अशोकं सप्तपर्णं च चम्पकं चूतमेव च। पूर्वाद्यानि वनान्याहुर्देवराजबहिःपुरात्।।२६८।।…