सयलविहिविहाण!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सयलविहिविहाण – Sayalavihivihaana. Name of book in Apabransh language written by Naynandi. नयनंदि द्वारा (ई. 1043) कृत अप्रभंष भाषाबद्व श्रावकाचार।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सयलविहिविहाण – Sayalavihivihaana. Name of book in Apabransh language written by Naynandi. नयनंदि द्वारा (ई. 1043) कृत अप्रभंष भाषाबद्व श्रावकाचार।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सम्यक्तव भावना – Samyaktva Bhaavanaa. Seven particular right reflection or volitions. संवेग, प्रषम, स्थैर्य, असंमूढ़ता, अस्मय, आस्तिक्य और अनुकम्पा ये 7 सम्यक्तव की भावनाएॅ है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सम्यग्मिथ्यादृष्टि – Samyagmithyaadristi. One with right & wrong faith. जो जीव सम्यग्मिथ्यात्व सहित हो।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति – Samyagmithyaatva Prakriti. Right-cum-wrong Karmic nature related to faith. दर्शन मोह की दूसरी प्रकृति जिसके उदय से यथार्थ व मिथ्या दोनो प्रकार का मिश्रित श्रद्वान है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सम्यग्मिथ्याचारित्र – Samyagmithyaacaaritra. Right-cum-wrong conduct. चारित्र मोह की एक प्रकृति जिसके उदस से यथार्थ व मिथ्या दोनो प्रकार का मिश्रित आचरण है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सम्यग्दृष्टि – Samyagdrishti. One with right perception or faith. जो जीव सम्यग्दर्षन सहित हो।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्फोट – Sphota. A bursing up, an explore, an element causing intensive expression of some meaning.किसी वस्तु का फूटना, विदारण, मीमांसक मान्य एक व्यापक तत्त्व जिसके द्वारा ध्यन्यात्मक शब्द मे अर्थ प्रकाषन की सामथ्र्य अभिव्यक्त होती है। स्फोटवाद का जैनाचार्यों ने निराकरण किया है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्फटिक – Spatika. A crystal, quartz, name of the 18th indrak of saudharma heaven, a summit of Gandhmdan Vijayardh mountain, the summit of Manushottar & Ruchak mountains.एक प्रकार की कांच के समान पास्दर्शी मणि, सौधर्म स्वर्ग का 18वां इन्द्रक, गंधमादन विजयार्ध का एक कूट, मानुषोत्तर पर्वतस्थ व रुचक पर्वतस्थ एक-एक कूट।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्पृहा – Sprhaa. Longing, intention, desire.वांछा, इच्छा, कामना, अभिलाषा।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्पृष्ट – Sprasta. Touched.स्पर्ष किया हुआ, प्राप्यकारी या छूकर-भिड़कर जाना हुआ (चक्षु इन्द्रिय अप्राप्यकारी है, क्योकि वह स्पृष्ट रुप से पदार्थ को ग्रहण नही करती, शेष 4 इन्द्रिय प्राप्यकारी है)।