जिनसहस्रनाम स्तोत्र
“…जिनसहस्रनाम स्तोत्र…” (गणिनी ज्ञानमती कृत-पद्यानुवाद) —शंभु छंद— जिनवर की प्रथम दिव्य देशना, नंतर सुरपति अति भक्ती से। निज विकसित नेत्र हजार बना, प्रभु को अवलोके विक्रिय से।। प्रभु एक हजार आठ लक्षण—धारी सब भाषा के स्वामी। शुभ एक हजार आठ नामों, से स्तुति करता वह शिवगामी।।१।। —दोहा— एक हजार सु आठ ये, श्रीजिननाम महान्। उनका…