आठवें परिच्छेद का सार
आठवें परिच्छेद का सार दैव और पुरुषार्थ के एकांत का खंडन एवं स्याद्वाद की सिद्धि (कारिका ८८ से ९१ तक) कोई मीमांसक भाग्य से ही सभी कार्यों की सिद्धि मानते हैं। चार्वाक पुरुषार्थ से ही सभी कार्यों की सिद्धि कहते हैंं। कोई विशेष मीमांसक स्वर्गादि को भाग्य से एवं कृषि आदि को पुरुषार्थ से मानते…