तृतीय परिच्छेद का सार
तृतीय परिच्छेद का सार नित्यैकांत-अनित्यैकांत का खंडन और स्याद्वाद सिद्धि (कारिका ३७ से ६० तक) सांख्य सभी पदार्थों को सर्वथा कूटस्थ नित्य मानते हैं, उनका कहना है कि आत्मा जानने रूप क्रिया का भी कर्त्ता नहीं है। ज्ञान और सुख प्रकृति (जड़) के धर्म है, केवल आत्मा इनका भोक्ता अवश्य है। ये लोग कारण में…