बीसवीं सदी के प्रथम पट्टाचार्य प्रशान्तमूर्ति आचार्य श्री वीरसागर महाराज इस भारत वसुन्धरा पर समय-समय पर अनेकों रत्नों ने जन्म लेकर इस धरा को अलंकृत किया है। उनमें से एक श्रेष्ठरत्न आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज हो चुके हैं, जिनसे मैंने आर्यिका दीक्षा को प्राप्त कर महाव्रत से अपने जीवन को पवित्र बनाया है। हैदराबाद…
श्री रविव्रत पूजा अडिल्ल छंद यह भविजन हितकार, सु रविव्रत जिन कही। करहु भव्यजन सर्व, सुमन देकें सही।। पूजो पार्श्र्व जिनेन्द्र, त्रियोग लगायके। मिटै सकल सन्ताप, मिलै निधि आयके।। मतिसागर इक सेठ, सुग्रन्थन में कहो। उनने भी यह पूजा कर आनंद लहो।। तातें रविव्रत सार, सो भविजन कीजिये। सुख सम्पति संतान, अतुल…
श्री कर्मदहन व्रत पूजा अथ स्थापना (शंभु छंद) हे सिद्ध प्रभो! तुम आठ कर्म, विरहित गुण आठ समन्वित हो। अष्टमि पृथिवी पर तिष्ठ रहे, ज्ञानाम्बुधि सिद्धरमापति हो।। समतारस आस्वादी मुनिगण, नित सिद्ध गुणों को ध्याते हैं। हम पूजें तुम आह्वानन कर, जिससे सब कर्म नशाते हैं।। ॐ ह्रीं सर्वकर्मविनिर्मुक्त-श्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।…
अनन्तचतुर्दशी व्रत की शास्त्रीय विधि कुछ विशेष ही है, जो इस पुस्तक में दी गई है। पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने स्वरचित अनन्तचतुर्दशी व्रत पूजा में सर्वप्रथम भगवान अनन्तनाथ स्तोत्र दिया है, पुन: पूजन के अंदर पंचकल्याणक अर्घ्यों के पश्चात् संस्कृत के १४ पद्य सहित अर्घ्य एवं ९६ मंत्र ब्र. हीराचन्द अमोलिक कृत अनन्तव्रत पूजा से दिये हैं।