०४. सप्तम भव पूर्व-“भोगभूमिज आर्य”!
भोगभूमिज आर्य किसी समय वज्रजंघ आर्य अपनी स्त्री के साथ कल्पवृक्ष की शोभा देखते हुए बैठे थे कि वहाँ पर आकाशमार्ग से दो चारण-ऋद्धिधारी मुनि उतरे। वज्रजंघ के जीव आर्य ने शीघ्र ही पत्नी सहित खड़े होकर उनका विनय करके नमस्कार किया। उस समय उन दोनों दम्पत्ति के नेत्रों से हर्षाश्रु निकल रहे थे। दोनों…