चौदह मार्गणा जिन भावों के द्वारा अथवा जिन पर्यायों में जीवों का अन्वेषण (खोज) किया जाये, उनको ही मार्गणा कहते हैं। ये अपने-अपने कर्म के उदय से होती हैं। इनके १४ भेद हैं-गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञित्व और आहार ये चौदह मार्गणाएँ हैं। १. चारों गतियों में…
गांव को आत्मनिर्भर बनाती गायें —रेखा व्यास रेवाड़ी कलां हरियाणा राज्य के मेवात जिले के फिरोजपुर झिरका तहसील का एक गांव है। यह दिल्ली से ८० किलोमीटर दूर अलवर सोहना रोड़ पर है। इस गांव में ३७० घर हैं। १५२ परिवार गरीबी रेखा से नीचे बसर कर रहे हैं। कृषि लगभग ९५ प्रतिशत लोगों…
गाय की बहु—उपयोगिता गांधीजी कहते थे कि गाय पशु नहीं बल्कि सुन्दर अर्थतन्त्र है। गाय का देश की अर्थव्यवस्था में भी काफी महत्व है। गाय का दूध, घी, मक्खन, गोबर आदि महत्वपूर्ण चीजें हैं। इतना ही नहीं, गाय के रोएं और नि:श्वास भी मानव—जीवनके लिए आवश्यक है। इस बात की पुष्टि वैज्ञानिकों ने भी अपने…
खाने के तुरंत बाद न लेटें आज की मशीनी जिंदगी में रात को देर से भोजन करना एक आम बात हो गई है । भारतीय परंपरा में वैसे ही सोने से तीन घंटे पूर्व भोजन करने की बात कही जाती है पर अब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी इसका अनुमोदन कर दिया है। ब्रीच वैंडी…
मुनियों के लिए एक उद्बोधन द्वारा – परम पूज्य आचार्यकल्प १०८ श्री श्रुतसागरजी महाराज ( समाधिस्थ ) जो शिष्य गुरु के आधीन न रहकर स्वतन्त्र रहते हैं और गुरुओं की आज्ञानुसार नहीं चलते, उन शिष्यों को जिनधर्म का विरोधी समझना चाहिए। गुरु भक्ति से रहित शिष्य निंद्य व दुर्गति का पात्र होता है । अन्तरंग…
सुभौम चक्रवर्ती हस्तिनापुर नगर में कौरववंशी कार्तवीर्य नाम का राजा था, उसने कामधेनु के लोभ में जमदग्नि नामक तपस्वी को मार डाला। जमदग्नि का लड़का परशुराम था। यह भी बड़ा बलवान था अत: उसने व्रुद्ध होकर पिता को मारने वाले कार्तवीर्य को मार डाला तथा अनेकों क्षत्रियों को भी मार डाला। उस समय कार्तवीर्य राजा…
आचार्यों के ३६ गुण आचार्यों के ३६ गुण माने हैं। मूलाचार में देखिए— संगहणुग्गहकुसलो सुत्तत्थविसारओ पहियकित्ती।किरिआचरणसुजुत्तो गाहुय आदेज्जवयणो य।।१५८।। मूलाचार पृ. १३३-१३४, श्लोक १५८। संगहणुग्गहकुसलो—संग्रहण संग्रह, अनुग्रहणमनुग्रह कोऽयोभेदो दीक्षादिदानेनात्मीयकरणं संग्रहः दत्तदीक्षस्य शास्त्रादिभिः संस्करणमनुग्रहस्तयोः कर्तव्ये ताभ्यां वा कुशलो निपुणः सुत्तत्थविसारओ—सूत्रं चार्थश्च सूत्रार्थों तयोस्ताभ्यां वा विशारदोऽवबोधको विस्तारको वा सूत्रार्थविशारदः। पहिदकित्ती—प्रख्यातकीर्तिः। किरियाचरणसुजुत्तो—क्रिया त्रयोदशप्रकारा पंचनमस्कारावश्यकासिकानिषेधिकाभेदात्। आचरणमपि—त्रयोदशविधं पंचमहाव्रतपंचसमितित्रि-गुप्तिविकल्पात्। तयोस्ताभ्यां वा…
भगवान शांतिनाथ प्रथम दृश्य कुरुजांगल देश की स्वर्ग तुल्य नगरी हस्तिनापुर। जहाँ शत्रुओं को पराजित करने वाले काश्यपगोत्रीय महाराजा अजितसेन अपनी प्रियदर्शना रानी के साथ राज्य करते थे। उन दोनों के पुण्यकर्म से ब्रह्म स्वर्ग से चयकर श्रेष्ठ गुणों के पुंज विश्वसेन नामक पुत्र जन्मे थे जो तीन ज्ञान के धारी थे। उन विश्वसेन का…
कषायप्राभृत ग्रंथ परम्परागत भगवान की दिव्यध्वनि से प्राप्त है स्वयं जयधवलाकार प्रस्तुत ग्रंथ के गाथा सूत्रों और चूर्णिसूत्रों को किस श्रद्धा और भक्ति से देखते हैं, यह उन्हीं के शब्दों में देखिये। एक स्थान पर शिष्य के द्वारा यह शंका किये जाने पर कि यह कैसे जाना ? इसके उत्तर में श्री वीरसेनाचार्य कहते हैं-…