नवदेवता पूजन गीता छन्द अरिहंत सिद्धाचार्य पाठक, साधु त्रिभुवन वंद्य हैं। जिनधर्म जिनआगम जिनेश्वर, मूर्ति जिनगृह वंद्य हैं।। नव देवता ये मान्य जग में, हम सदा अर्चा करें। आह्वान कर थापें यहाँ, मन में अतुल श्रद्धा धरें।। ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधु जिनधर्मजिनागमजिन-चैत्यचैत्यालयसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधु जिनधर्मजिनागमजिन-चैत्यचैत्यालयसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः…
भगवान महावीर पूजा दोहा स्वयंसिद्धलक्ष्मीपति, महावीर भगवान् । सर्व कर्म रिपु जीतकर, पाया पद निर्वाण।।१।। वर्धमान, अतिवीर प्रभु, सन्मति वीर जिनेश। आवो आवो अब यहाँ, पूरो आश महेश।।२।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव…
श्री पावापुरी सिद्धक्षेत्र पूजा रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती स्थापना (चौबोल छंद) महावीर प्रभु जिस धरती से, कर्मनाश कर मोक्ष गये। सिद्धशिला के स्वामी बनकर, सब कर्मों से छूट गये।। पावापुर निर्वाणभूमि, तीरथ का अर्चन करना है। आह्वानन स्थापन करने, जलमंदिर में चलना है।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरनिर्वाणभूमिपावापुरीसिद्धक्षेत्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीमहावीरनिर्वाणभूमिपावापुरीसिद्धक्षेत्र! अत्र तिष्ठ…
सिद्ध परमेष्ठी के आठ गुण सम्मत्तणाणदंसण वीरिय सुहुमं तहेव अवगहणं। अगुरुलहुमव्वावाहं अट्ठगुणा होंति सिद्धाणं।। सिद्धों के आठ कर्मो के क्षय हो जाने से आठ गुण प्रगट हो जाते हैं। मोहनीय कर्म के क्षय से सम्यक्त्व, ज्ञानावरण के क्षय से केवलज्ञान, दर्शनावरण के क्षय से केवल दर्शन, अन्तरायकर्म के क्षय से अनन्तवीर्य, नामकर्म के अभाव से…
आत्मा के तीन भेद १‘‘पंचपरमेष्ठियों को भावपूर्वक नमस्कार करके प्रभाकर भट्ट अपने परिणामों को निर्मल करके ही योगीन्द्रदेव से शुद्धात्मतत्त्व के जानने के लिए विनती करते हैं।’’ हे स्वामिन्! इस संसार में रहते हुए मेरा अनन्तकाल व्यतीत हो गया किन्तु मैंने कुछ भी सुख नहीं पाया, प्रत्युत् महान दु:ख ही पाया है। चतुर्गति दु:खों से…
जीव के स्वतत्त्व जीव के असाधारण (जीव के सिवाय अन्य किसी द्रव्य में नहीं पाये जाने वाले) भाव पाँच हैं, वे जीव के स्वतत्त्व कहलाते हैं। औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक। १. औपशमिक-कर्मों के उपशम से होने वाले भाव को औपशमिक कहते हैं। इनके दो भेद हैं-औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र। उपशमसम्यक्त्व-अनादि मिथ्यादृष्टि की…